Saturday, 21 December 2024

शुद्ध भक्त सर्वोत्तम 

निर्विशेषवादी के लिए ब्रह्मभूत अवस्था अर्थात ब्रह्म से तदाकार होना परम लक्ष्म होता है। लेकिन साकारवादी शुद्धभक्त को इससे भी आगे शुद्ध भक्ति में प्रवृत्त होना होता है। इसका अर्थ हुआ जो भगवद्भक्ति में रत है, वह पहले ही मुक्ति की अवस्था, जिसे ब्रह्मभूत या ब्रह्म से तादात्म्य कहते हैं,...

Published on 13/04/2023 6:15 AM

कर्मयोग के बिना संन्यास नहीं

आज की चिंतनधारा में संन्यास और कर्मयोग को अलग-अलग करके देखा जा रहा है। महर्षि अरविंद ने अपने साधना-प्रम में संन्यास को कोई स्थान नहीं दिया। उन्होंने कर्मयोग का ही विधान किया। इसी प्रकार कई विचारधाराएं तो संन्यास-विरोधी भी हो गई हैं। किंतु मैं संन्यास और कर्मयोग में कोई विरोध...

Published on 12/04/2023 6:15 AM

सर्वव्यापी है आत्मा

केवल वह जो क्षणिक है, छोटा या नर है, उसे ही सुरक्षा की आवश्यकता है; जो स्थायी है, बड़ा या विशाल है, उसे सुरक्षा की जरूरत नहीं। सुरक्षा का अर्थ है समय विशेष को लंबा कर देना; इसीलिए सुरक्षा परिवर्तन में बाधक भी होती है। पूर्ण सुरक्षा की स्थिति में...

Published on 11/04/2023 6:00 AM

निराशा से होती है हार

नियति प्रम के निरंतर उल्लंघन से प्रकृति का अदृश्य वातावरण भी इन दिनों कम दूषित नहीं हो रहा है। भूकम्प, तूफान, बाढ़, विद्रोह, अपराध, महामारियां आदि पर नियंत्रण पाना कैसे संभव होगा, समझ नहीं आता। किंकर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में पहुंचा हतप्रभ व्यक्ति प्रमश: अधिक निराश होता है। इतना साहस और पराक्रम...

Published on 10/04/2023 6:30 AM

ईश्वर का आहार है साधना

तुमने ईश्वर को सदैव पिता के रूप में देखा है, कहीं ऊपर स्वर्ग में। मन में बैठी इस धारणा के संग तुम ईश्वर से कुछ मांगना चाहते हो और उनसे कुछ लेना। परन्तु क्या तुम ईश्वर को एक शिशु के रूप में देख सकते हो? जब तुम ईश्वर को शिशु...

Published on 09/04/2023 6:00 AM

 सच्चे ज्ञानी की विशेषता

व्यक्ति सत्संगति से तीन वस्तुओं को-शरीर, शरीर का स्वामी या आत्मा तथा आत्मा के मित्र को- एक साथ संयुक्त देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है। जब तक आध्यात्मिक विषयों के वास्तविक ज्ञाता को संगति नहीं होती, वे अज्ञानी हैं, वे केवल शरीर को देखते हैं, और जब यह शरीर विनष्ट...

Published on 08/04/2023 6:00 AM

 विचारों की तरंगें

राजा की सवारी निकल रही थी। सर्वत्र जय-जयकार हो रही थी। सवारी बाजार के मध्य से गुजर रही थी। राजा की दृष्टि एक व्यापारी पर पड़ी। वह चन्दन का व्यापार करता था। राजा ने व्यापारी को देखा। मन में घृणा और ग्लानि उभर आई। उसने मन ही मन सोचा, यह...

Published on 07/04/2023 6:45 AM

अज्ञान का आवरण

गुरू के पास डंडा था। उस डंडे में विशेषता थी कि उसे जिधर घुमाओ, उधर उस व्यक्ति की सारी खामियां दिखने लग जाएं। गुरू ने शिष्य को डंडा दे दिया। कोई भी आता, शिष्य डंडा उधर कर देता। सब कुरूप-ही-कुरूप सामने दीखते। अब भीतर में कौन कुरूप नहीं है? हर...

Published on 06/04/2023 6:15 AM

अपूर्णता से पूर्णता की ओर 

मनुष्य का बाह्य जीवन वस्तुत: उसके आंतरिक स्वरूप का प्रतिबिम्ब मात्र होता है। जैसे ड्राइवर मोटर की दिशा में मनचाहा बदलाव कर सकता है। उसी प्रकार, जीवन के बाहरी ढर्रे में भारी और आश्चर्यकारी परिवर्तन हो सकता है। वाल्मीकि और अंगुलिमाल जैसे भयंकर डाकू क्षण भर में परिवर्तित होकर इतिहास...

Published on 05/04/2023 6:30 AM

 इच्छा का लक्ष्य है खुशी 

बुरी आदत को छोड़ने की असमर्थता तुम्हें तकलीफ देती है। जब तुम बहुत पीड़ित होते हो, वह व्यथा तुम्हें उस आदत से छुटकारा दिलाती है। जब तुम अपनी कमियों से व्यथा महसूस करते हो, तब तुम साधक हो। पीड़ा तुम्हें आसक्ति से दूर करती है। यदि अपने दुर्गुणों को हटा...

Published on 13/03/2023 6:00 AM