भारतीय रेलवे में कथित भूमि अधिग्रहण घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी सहयोगी और कारोबारी अमित कत्याल को जमानत दिए जाने के खिलाफ ईडी की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि वह दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। पीठ ने कहा, 'कोई बड़ी मछली नहीं। मुख्य आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। आप केवल छोटी मछलियों के पीछे क्यों पड़े हैं? क्या आप उनके पीछे जाने से डरते हैं? आपने 11 अन्य आरोपियों को क्यों नहीं गिरफ्तार किया?'
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की दलील
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश कानून की नजर में सही नहीं है। इसे खारिज किया जाना चाहिए।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
दरअसल, पिछले साल 17 सितंबर को हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा अपनाई गई पक्षपातपूर्ण नीति की निंदा की थी और कत्याल को जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि मामले में किसी अन्य आरोपी की गिरफ्तारी और जांच में शामिल होने के बावजूद उसे रांची जाने से पहले इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अनावश्यक रूप से हिरासत में लिया गया। जमानत आदेश में कहा गया कि एजेंसी उसकी गिरफ्तारी की आवश्यकता को स्पष्ट नहीं कर सकी। अदालत ने इस आधार पर भी कत्याल को जमानत का हकदार माना कि उसकी भूमिका अन्य आरोपियों की तुलना में बहुत कम थी। 10 नवंबर, 2023 को गिरफ्तारी: कत्याल को ईडी ने 10 नवंबर, 2023 को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया था। उन्हें 10 लाख रुपये के निजी मुचलके और समान राशि की दो जमानतें जमा करने पर हाईकोर्ट ने जमानत दी थी।
ईडी का तर्क
ईडी ने तर्क दिया था कि कत्याल ने राजद सुप्रीमो के कथित भ्रष्ट आचरण से होने वाली आय को संभालने में लालू और उनके परिवार के सदस्यों की सक्रिय रूप से मदद की थी। ईडी ने दावा किया था कि कत्याल एके इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी का निदेशक था। इस कंपनी ने लालू की ओर से उम्मीदवारों से जमीन खरीदी थी। इस मामले में राजद सुप्रीमो के परिवार के कुछ अन्य सदस्य भी आरोपी हैं।
निचली अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी
22 मई को एक निचली अदालत ने कत्याल की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उन्हें राहत देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
जमीन के बदले नौकरी का मामला क्या है?
अधिकारियों ने बताया कि यह मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य क्षेत्र में ग्रुप-डी की नियुक्तियों से जुड़ा है। यह नियुक्ति 2004 से 2009 के बीच की गई थी, जब लालू रेल मंत्री थे। इन नियुक्तियों के बदले लोगों ने राजद सुप्रीमो के परिवार या सहयोगियों के नाम पर जमीन के टुकड़े उपहार में दिए या हस्तांतरित किए। 18 मई 2022 को लालू और उनकी पत्नी, दो बेटियों, अज्ञात सरकारी अधिकारियों और निजी व्यक्तियों सहित अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।