ग्वालियर। जिला कोर्ट में शनिवार को भृत्यों की भर्ती में बेरोजगारी की असली तस्वीर देखने को मिली। इंजीनियरिंग, प्रबंधन, स्नातक, स्नातकोत्तर व कम्प्यूटर की डिग्री हासिल करके युवाओं को भृत्य बनने के ख्वाब देखने पड़ रहे हैं। शनिवार को इस भर्ती में 80 फीसदी से अधिक उम्मीदवारों के पास बड़ी डिग्री व टेक्निकल डिप्लोमा थे। जब नईदुनिया ने उनके मन को टटोला तो उनका कहना था कि धक्के खाने से बेहतर भृत्य की नौकरी करना है। नौकरी सरकारी है, इसलिए इंटरव्यू देने आए हैं।

जिला कोर्ट में 5 भृत्यों की भर्ती के लिए इंटव्यू लिए गए। इनमें सामान्य वर्ग में 2 पद पुरुषों के लिए, 1 पद सामान्य वर्ग महिला के लिए व 1-1 पद अनुसूचित व अनुसूचित जनजाति के हैं। इंटरव्यू के लिए जिला कोर्ट में सुबह से ही युवकों की कतार लग गई थी। एक लाइन में 100 से 150 युवक खड़े हुए थे। वो अंदर से इंटरव्यू देकर आने वालों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की जानकारी ले रहे थे।

जजों ने किए सवाल, झाड़ू-पोंछा कर लेते हैं?

इंटरव्यू के लिए आठ पीठ बनाई गई थीं। इंटरव्यू देने आए उम्मीदवारों से पांच सवाल किए गए। सुबह 9 बजे से 5 बजे तक साक्षात्कार देने वालों की लाइन लगी रही।

सवाल-झाड़ू-पोंछा लगा लेते हैं।

- बर्तन साफ कर लेते हैं।

- खाना बना लेते हैं।

- पिता का क्या व्यवसाय है।

- गाड़ी चलाना आता है।

- उम्मीदवारों से 8 वीं व 10 वीं की मार्कशीट देखी गईं, जबकि उम्मीदवार अपने साथ हायर एजूकेशन की मार्कशीट लेकर पहुंच थे। एक युवक के इंटरव्यू में 1 मिनट से कम वक्त लगा।

क्या बोले उम्मीदवार

- झाड़ू-पोंछा कर लेते हैं और घर में भी काम करते हैं। इसलिए इस काम को करने में हमें कोई दिक्कत नहीं है। जो काम करने को मिलेगा, वह खुशी से करेंगे। आप तो हमें सिर्फ नौकरी दे दो।

धक्के खाने से सरकारी भृत्य बनना ठीक है

आदेश जैन

योग्यताः बीई, इलेक्ट्रिकल ब्रांच

क्या सोचना हैः इंजीनियरों की हालत खराब है। बेरोजगारी के धक्के खाने से सरकारी भृत्य बनना अच्छा है। इसलिए नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया है। सरकारी नौकरी तो वैसी भी अच्छी होती है।

नहीं मिल रहा है रोजगार

योगेन्द्र कुशवाह

योग्यताः एम कॉम

क्या सोचना हैः भले ही भृत्य की नौकरी है, लेकिन वह सरकारी विभाग में है। घर चलाने के लिए 5700 रुपए तो मिलेंगे। घर पर खाली तो नहीं बैठेंगे।

काम करना तो सीखेंगे

नेहा सचदेवा

योग्यताः एम कॉम, पीजीडीसीए व प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी।

क्या सोचना हैः सरकारी नौकरी मिलेगी। इससे काम करना तो सीखेंगे। इतनी एजुकेशन लेकर अब तक कोई फायदा नहीं हुआ है। भृत्य की नौकरी में कोई बुराई नहीं है।

बेरोजगारी ने तोड़ दिया है

रामस्वरूप माहौर

योग्यताः बीए, बीएड

क्या सोचना हैः बीएड भी काम नहीं आई। अगर उम्र 40 साल के ऊपर निकल गई तो डिग्रियां भी किसी काम की नहीं रहेंगी। बेरोजगारी ने तोड़ दिया है। इसलिए भृत्य की नौकरी का इंटरव्यू दिया है।

प्राइवेट नौकरी से अच्छी है

कमल

योग्यता- बीसीए

क्या सोचना हैः प्राइवेट नौकरी से सरकारी भृत्य की नौकरी अच्छी है। बीसीए किए हुए युवकों को नौकरी नहीं मिल रही है। इसलिए भविष्य को देखते हुए भृत्य बनना ठीक है।