केंद्र सरकार चरणबद्ध तरीके से 14,028 इलेक्ट्रिक बसें (ई-बसें) खरीदने पर विचार कर रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहली निविदा संभवतः 10,000 बसों के लिए होगी, क्योंकि अभी बसों की मांग इसकी क्षमता से अधिक है। केंद्र को कुल 7 में से 4 राज्यों- गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक और दिल्ली  से 15,400 बसों की मांग प्राप्त हुई है। इसमें 2,500 बसों की मांग दिल्ली से हुई है। राज्यों की सूची में जिन राज्यों ने अभी अपनी मांग का उल्लेख नहीं किया है, उनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। 

उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘4 राज्यों से 15,400 ई-बसों की मांग पहले ही आ चुकी है, जबकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की ओर से मांग का इंतजार किया जा रहा है। हमारी 14,028 बसों की क्षमता से अधिक मांग पहले ही आ चुकी है। ऐसे में हम आनुपातिक आधार पर टेंडर जारी करने पर विचार कर रहे हैं। हम कुछ बसें उन राज्यों के लिए रखेंगे, जिन्होंने अपनी मांग नहीं रखी है। संभवतः 10,000 से 11,000 बसों के लिए एक निविदा जारी की जाएगी।’

बहरहाल अधिकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने अब तक फैसला नहीं किया है कि प्रत्येक राज्य को कितनी बसें आवंटित की जाएंगी।  

भारी उद्योग मंत्रालय ने सार्वजनिक परिवहन को बिजली से संचालित करने और इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग को बढ़ावा देने के लिए 10,900 करोड़ रुपये की पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवॉल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल इनहैंसमेंट (पीएम ई-ड्राइव)  का करीब 40 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण औरऔर ईवी की मांग को बढ़ावा देने पर खर्च करने की योजना बनाई है। मंत्रालय ने 4,391 करोड़ रुपये का आवंटन 14,028 ई बसें चलाने के लिए आबंटित किया है, जिससे वित्त वर्ष 2026 के अंत तक सब्सिडी पर वाहन मुहैया कराए जा सकें। 

एनर्जी इफीसिएंसी सर्विसेज लिमिटेड की सहायक इकाई कनवर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड पहली निविदा के साथ तैयार है। उद्योग मंत्रालय से मंजूरी मिलते ही निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इस सिलसिले में भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव व प्रवक्ता से मांगी गई जानकारी पर कोई जवाब नहीं मिल सका। 

अधिकारी ने कहा कि सब्सिडी निर्धारित करने के लिए एक फॉर्मूला बनाया गया है,जो बसों की लागत पर निर्भर होगा। बस की लागत का मसला जटिल है क्योंकि बसें 10 साल के लिए चलती हैं और इसमें पूंजीगत लागत आती है। ऐसे में बोली सड़क पर चलने के वर्षों और उसकी लागत के आधार पर तय होगी। 

उदाहरण के लिए अगर बोली 60 से 65 रुपये प्रति किलोमीटर की है और बस 10 साल तक रोजाना 200 किलोमीटर चलती है तो इसके मुताबिक बस की लागत की गणना की जा सकती है। अधिकारी ने कहा, ‘जब हमें बस की कीमत पता चल जाएगी तो हम सब्सिडी की मात्रा के बारे में भी बता देंगे। सब्सिडी थोड़ी कम रह सकती है, क्योंकि हम कम लागत वाली बोली को प्राथमिकता देंगे।’

सब्सिडी की अधिकतम मात्रा 9 मीटर, 12 मीटर और 15 मीटर की बसों के लिए क्रमशः 20 लाख, 25 लाख और 35 लाख रुपये है।