रांची। फगुआ असुर की उम्र 70 साल के करीब है। देश की आजादी के भी 75 साल हो गए, लेकिन उन्होंने ट्रेन नहीं देखी। जब देखी ही नहीं, तब सफर करने का सवाल ही नहीं उठता। वह अकेले नहीं हैं। उनके जैसे कई और होंगे। वे नेतरहाट के पाट इलाके में रहते हैं। पोलपोल गांव है। यहां अब तक सड़क भी नहीं पहुंच पाई है। बारिश के मौसम में यह गांव कट जाता है।
75 सालों से रेल का इंतजार कर रहे गुमलावासी
पोलपोल और सखुआपानी के बीच एक नाला है। बारिश में यह नाला लबालब भर जाता है। तब, जीवन भी कठिन हो जाता है। यह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि जब पूर्वोत्तर और उत्तराखंड में रेललाइन बिछ रही है, वहीं, पिछले 75 साल से गुमलावासी रेल का इंतजार कर रहे हैं।
हालांकि, गुमला पहले रांची जिले का ही हिस्सा था, लेकिन इसका क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। रायडीह प्रखंड के मंझा टोली के विनोद कुमार गुप्ता कहते हैं कि हम लोग लंबे समय से रेल की मांग कर रहे हैं। लोहरदगा से होते हुए मंझा टोली और फिर कोरबा तक। एक बार सर्वे भी हुआ था, लेकिन फिर ठंडे बस्ते में पड़ गया।
रेल लाइन बिछने के कई हैं फायदे
शंख मोड़ के राकेश कुमार झा कहते हैं कि रेल लाइन बिछ जाने से राह भी आसान होगी और गुमला में सब्जी उत्पादक अपनी सब्जी नागपुर-मुंबई सीधे भेज सकते हैं। इससे रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
डुमरी के मरियानुस तिग्गा भी कहते हैं कि रेल की मांग लंबे समय से की जा रही है। लोहरदगा संसदीय क्षेत्र की किस्मत रही है कि यहां के कई सांसद केंद्र में मंत्री भी रहे। हर पार्टी के, लेकिन आज तक गुमला रेल का मुंह नहीं देख सका। जबकि यहां खदानें भी काफी हैं।
गुमला में हैं कई पर्यटन स्थल
गुमला के व्यवसायी राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि राज्य में कई पर्यटन स्थल हैं। आंजन धाम है। पालकोट है। राज्य का पहला किला नवरतनगढ़ है। धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है। परमवीर अल्बर्ट एक्का का गांव है। गुमला जिले में कई पर्यटन स्थल हैं।
व्यापार भी तेजी से बढ़ेगी और यहां से पलायन भी रुक जाएगा। लायंस क्लब, गुमला के सचिव अशोक जायसवाल भी कहते हैं कि कई बार मांग की गई। यहां गुमला में टिकट काउंटर भी खोलने की मांग की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं।
कोविड काल में यहां का काउंटर बंद कर दिया है। झारखंड चैंबर के अध्यक्ष किशोर मंत्री ने इसी महीने की पहली तारीख को रांची रेल मंडल के डीआरएम जसमीत सिंह बिंद्रा से भेंटकर इस मांग को उठाया।