इंदौर। चार साल पहले हुए सेंधवा बस कांड के तीन आरोपियों की फांसी की सजा पर बुधवार को हाई कोर्ट ने मुहर लगा दी। बस मालिक को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त घोषित कर दिया। दो साल पहले सेशन कोर्ट ने मामले में तीन आरोपियों को फांसी और बस मालिक को उम्रकैद व 62 लाख रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी, वहीं शासन फांसी के फैसले की पुष्टि के लिए हाई कोर्ट पहुंचा था।

उप महाधिवक्ता दीपक रावल ने हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए बताया न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति जेके जैन की युगलपीठ ने बुधवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने आरोपी राजकुमार कुशवाह, तरूण सोनी और दिलीप शर्मा की फांसी की सजा कायम रखी, जबकि बस मालिक नरेश कुमार माहेश्वरी को दोषमुक्त कर दिया। करीब डेढ महीने पहले युगल बेंच में मामले की सुनवाई पूरी हो गई थी। तब से फैसले का इंतजार था।

तीसरी बार सुनवाई के बाद आया फैसला

सेंधवा बस कांड में हाई कोर्ट में तीसरी बार सुनवाई के बाद फैसला जारी हुआ। पहली बार न्यायमूर्ति शांतनु केमकर और न्यायमूर्ति जेके जैन की डबल बेंच ने इस प्रकरण में बहस सुनी थी। सुनवाई सितंबर 2014 में पूरी हो गई थी। फैसले का इंतजार हो रहा था कि न्यायमूर्ति शांतनु केमकर का तबादला जबलपुर हो गया। इससे मामले की सुनवाई दोबारा शुरू की गई। इस बार न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति टीके कौशल की डबल बेंच ने बहस सुनी, लेकिन फैसला सुनाने के पहले ही 7 सितंबर को न्यायमूर्ति टीके कौशल रिटायर हो गए। प्रकरण में तीसरी बार बहस तय की गई। इस बार न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति जेके जैन की डबल बेंच ने सुनवाई की। सुनवाई पूरी होने के करीब डेढ़ महीने बाद यह फैसला आया है।

यह है मामला

21 अगस्त 2011 को सेंधवा बस स्टैंड पर सवारियां बैठाने की बात पर बस ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर के बीच विवाद हो गया था। इसके बाद अशोका ट्रेवल्स के तीन कर्मचारियों ने साईं ट्रेवल्स की सेंधवा-इंदौर बस को बालसमुंद बेरियर पर रोका और पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। हादसे में 15 लोगों की मौत हो गई थी। इस नृशंस कांड की पूरे देश में गूंज रही। 13 सितंबर 2013 को बड़वानी के विशेष न्‍यायाधीश देवेंद्रसिंह सोलंकी ने आरोपी बस क्लीनर राजकुमार कुशवाह, ड्रायवर तरूण सोनी और कंडक्टर दिलीप शर्मा को फांसी की सजा सुनाई थी। बस मालिक नरेश कुमार को उम्रकैद और 62 लाख रुपए अर्थदंड से दंडित किया था। शासन ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जबकि आरोपियों ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की। नरेश कुमार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी भी पैरवी करने आए थे।