ग्वालियर। दयाल शिक्षा समिति द्वारा दयाल प्राथमिक विद्यालय वीरपुर (अनुदानित शाला) में एक चौकाने वाला मामला सामने आया है। स्कूल में ममता वैश्य ने हायर सेकंडरी व स्नातक की फर्जी मार्कशीट पर शिक्षक की नौकरी प्राप्त कर ली, जब वेतन नहीं मिला तो 27 लाख रुपए के वेतन की कोर्ट से डिक्री करा ली। महिला शिक्षक के वेतन का भुगतान नहीं हुआ तो कोर्ट ने कलेक्टर व शिक्षा विभाग के उप संचालक की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया। कोर्ट का मिलने पर शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। कोर्ट में शिक्षा विभाग ने दोनों अधिकारियों की संपत्ति कुर्की रोकने के लिए आवेदन पेश किया है।

दयाल प्राथमिक विद्यालय को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। सन 1987 में ममता वैश्य ने स्कूल में शिक्षक की नौकरी हासिल की। ज्वॉनिंग के बाद उसके पति मुन्‍ना सिंह ने महिला की फर्जी मार्कशीट की शिकायत की। जांच में पाया कि हायर सेकंडरी व बीए की मार्कशीट फर्जी है। इसके बाद 1993 में उसे नौकरी से हटा दिया। इसके बाद केस कोर्ट में चलता रहा। वर्ष 2013 में महिला शिक्षक ने अपने वेतन के लिए कोर्ट में दावा पेश किया कि 1993 से लेकर अबतक 27 लाख का रुपए वेतन निकलता है, वह वेतन मुझे दिलाया जाए। दावा आने के बाद शासन व स्कूल शिक्षा की ओर से वकीलों ने अपना वकालतनामा पेश कर दिया। लेकिन वकील पैरवी के लिए कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए। कोर्ट ने पक्ष रखने के लिए शासन को पूरा मौका दिया, लेकिन उस पर कोई गौर नहीं किया गया। इसके बाद कोर्ट ने टीचर के दावे को सही मानते हुए शिक्षा विभाग को वेतन के 27 लाख रुपए देने का आदेश दिया। शिक्षक को वेतन नहीं मिला तो इसी साल 28 अगस्त को कोर्ट ने कलेक्टर व उप संचालक शिक्षा विभाग की संपत्ति कुर्क करने का आदेश जारी कर दिया है। कुर्की आदेश के बाद विभाग की चूक का खुलासा हुआ है। विभाग की चूक की सामने आई है।

शिक्षा विभाग ने अब ये तथ्य पेश किए

- महिला ने फर्जी मार्कशीट पर नौकरी हासिल की थी। 1993 में एफआईआर के लिए थाने में आवेदन भी दिया था।

-हायर सेकंडरी की मार्कशीट में जन्म दिनांक 1953 की जगह 1955 किया गया। फेल की मार्कशीट को पास बनाया गया है।

- जीवाजी विश्वविद्यालय की मार्कशीट के बार में जांच कराई थी, विवि ने बताया था कि यह मार्कशीट नहीं बनाई है।

- फर्जी मार्कशीट को लेकर शिक्षा विभाग थाने में फिर से आवेदन दे रहा है।

- शाला अनुदानित है। उसको वेतन देने की जिम्मेदारी शाला की है। वेतन को लेकर जो डिक्री की गई है, उसके लिए शासन बाध्य नहीं है।

शासन ने ऐसे की चूक

-शासन की ओर से वकील ने अपना वकालतनामा पेश तो कर दिया, लेकिन पैरवी करने के लिए कोर्ट में नहीं गए। शिक्षा विभाग को नोटिस मिलने के बाद उन्होंने भी अपना वकील नियुक्त किया था, वकील पैरवी में नहीं आया।

- जिन तथ्यों को शिक्षा विभाग अब बता रहा है, वे तथ्य सुनवाई के दौरान पेश नहीं किए गए।