दतिया।भगवान श्रीराम का वनवास तो 14 साल में खत्म में हो गया था और वह अयोध्या लौट आए थे। लेकिन ग्वालियर में सिंधी कॉलोनी में रहने वाले दीपक को घर वापसी में साढ़े 24 साल लग गए। यह भी तब संभव हो पाया जब जबलपुर के समाजसेवी ने उसे अपने परिवार से मिलाने
की ठानी।

दीपक पुत्र महेश लाडकानी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। दीपक की दतिया में ननिहाल है। छह साल की उम्र में वह दतिया में मां के साथ एक शादी में आया था। इसी दौरान वह किला चौक पर एक बारात को देखते - देखते उसके पीछे चल दिया और रेलवे स्टेशन पहुंच गया। रेलवे स्टेशन पर वह ट्रेन में बैठा और ग्वालियर पहुंचा।

पुलिस को लावारिस हालत में मिलने पर पुलिस ने उसे रीवा बाल सुधार गृह पहुंच गया। रीवा से वह कटनी तथा जबलपुर सुधारगृह में पहंुंचा। जबलपुर में बालिग होने के बाद उसे बाल सुधार गृह से निकाल दिया गया। वर्तमान में दीपक की उम्र 30 साल चार माह है।

जबलपुर में बाल सुधार गृह से मुक्त होने के बाद वह फर्नीचर कारोबारी सुनील शर्मा के संपर्क में आया और अपनी पूरी कहानी सुनाई। दीपक को सिर्फ अपनी मां और पिता का नाम याद था।
आखिर खोज ही निकाला

सुनील ने दीपक को उसके परिवार से मिलाने की ठान ली और उसके पुराने फोटो के आधार पर जांच पड़ताल करते हुए दतिया में सिंधी मंदिर में बल्देव राज बल्लू के संपर्क में आए। बल्लू ने जब अपने मित्रों से इस संबंध में चर्चा की तो दीपक के साढ़े 24 साल पहले गुम होने का मामला सामने आया और सभी ने ग्वालियर में दीपक के मां - बाप को खोज निकाला।
शर्मा का सम्मान: दीपक के मां-बाप ने सुनील शर्मा का सिंधी मंदिर में श्रीफल देकर सम्मान किया।

मां ने एक ही बार में पहचान लिया

कहा जाता है कि खून - खून को आवाज देता है। दीपक के मामले में यह साबित हुआ। दतिया सिंधी मंदिर में शुक्रवार को जब दीपक को अन्य लड़कों के साथ भेजा गया तो ग्वालियर से दतिया पहंुची मां लता लाडकानी ने एक ही बार में उसे पहचान लिया। दीपक भी मां को देख लिपट कर रोने लगा। मां - बेटे की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा देख कर बहां मौजूद अन्य लोगों की आंखें भी नम हो गई।