नई दिल्ली । न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम व्यवस्था को बदलकर न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने के विधेयक पर संसद के दोनों सदनों ने मुहर लगा दी है। लोकसभा के बाद राज्यसभा ने गुरुवार को इस बाबत संविधान संशोधन और नियुक्ति आयोग विधेयक को पारित कर दिया। इस विधेयक के कानून बनने के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण न्यायिक आयोग करेगा।

इसने दो दशक से कोलेजियम व्यवस्था को बदलने की कवायद को अंजाम तक पहुंचा दिया। लोकसभा के बाद राज्यसभा में इसके लिए 121वें संविधान संशोधन विधेयक और न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक पारित करने को लेकर हुए मतविभाजन में सदन एकमत नजर आया। उच्च सदन में बहुमत की कमी के बावजूद राजग सरकार ने अहम विधेयक की नैया पार लगा ली। हालांकि 121वें संविधान संशोधन विधेयक पर मतदान के दौरान जानेमाने वकील और सांसद राम जेठमलानी ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। बहस के दौरान भी उन्होंने विधेयक में प्रस्तावित आयोग की संरचना को आधा-अधूरा करार दिया। जवाब में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना था कि इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार भी होगा और न्यायपालिका की संविधान प्रदत्ता गरिमा भी बनी रहेगी। राज्यसभा में विधेयक को अधिक सख्त बनाने वाले वामदलों द्वारा पेश संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया।

नई व्यवस्था में न्यायाधीशों की नियुक्ति छह सदस्यीय आयोग करेगा जिसकी अगुआई सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश करेंगे। इसमें सदस्य के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जजों के अलावा कानून मंत्री और दो प्रबुद्ध व्यक्ति भी इसके सदस्य होंगे। न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम व्यवस्था 1993 से लागू है और तभी से इस पर सवाल उठते रहे हैं। जब तत्कालीन राष्ट्रपति ने संदर्भ पत्र भेजकर सुप्रीम कोर्ट से इस पर राय मांगी और स्थिति साफ करने को कहा तो 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर इस पर मुहर लगा दी। साथ ही कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने वाले कोलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे। कोलेजियम की राय सरकार पर बाध्यकारी होगी। दो प्रबुद्ध व्यक्तियों का चुनाव प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष की तीन सदस्यीय समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में शामिल होगा।