जयपुर. तमाम अंतर्विरोधों के बीच पंजाब में चल रहे कैप्टन वर्सेज सिद्धू (Captain Vs Siddhu) के विवाद को कांग्रेस (Congress)  आलाकमान ने सुलझा लिया है. सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बाद माना जा रहा है कि अब कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव की तैयारी करेगी. अब सबकी नजर राजस्थान में काफी लंबे समय से चल रहे गहलोत बनाम पायलट (Gehlot Vs Pilot) विवाद पर है. कांग्रेस अब इस सियासी विवाद (Political crisis) का भी जल्द पटाक्षेप करने के मूड में है.

पार्टी सूत्रों के मुताबि​क फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री में कोई बदलाव नहीं होगा. गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे. एआईसीसी संगठन में बदलाव होना है और उसी प्रक्रिया के तहत सचिन पायलट को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है. उन्हें राजस्थान का प्रभार भी दिया जा सकता है. इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार भी जल्द होगा और उनमें उन्हें भी जगह मिलेगी, जिन्हें सचिन मंत्री बनाना चाहते हैं. उनके कितने समर्थक मंत्री बन सकते हैं, यह संख्या अभी निर्धारित नहीं हुई है.


राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल में आएंगे समर्थक
इसके अलावा राजनीतिक नियुक्तियों, जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों में सचिन के समर्थकों को उचित प्र​तिनिधित्व दिया जाएगा. पार्टी आलाकमान का मानना है कि बोर्ड और निगमों में पायलट या गहलोत गुट को महत्व देने के बजाए पार्टी के आस्थावान कार्यकर्ताओं को इसमें जगह दी जाएगी. फिलहाल इस बदलाव के साथ पार्टी को एकजुट करने के प्रयास किए जा सकते हैं.

प्रशांत किशोर यहां भी कर सकते हैं मदद
सूत्रों के मुताबिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पंजाब के कैप्टन और सिद्धू मसले को ​सुलझाने में कांग्रेस आलाकमान की काफी मदद की है. पीके पहले से ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के सलाहकार के रूप में काम कर ही रहे हैं. अब गहलोत और पायलट विवाद में भी वे अपनी ओर से कोई हल सुझा सकते हैं. ताकि इस विवाद का पटाक्षेप हो सके.

पंजाब सुलह के बाद अब राजस्थान पर नजर
पंजाब कांग्रेस के विवाद को हल करने के बाद कांग्रेस का अब पूरा ध्यान राजस्थान पर आ गया है. पार्टी अब इस विवाद को और लंबा नहीं खींचना चाहती. इसके लिए कोई ऐसा बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है, जिससे दोनों पक्ष मान जाएं. इस फार्मूले में दोनों ही पक्षों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जाएगी.

एक साल से ज्यादा समय से चल रहा है विवाद
एक साल से ज्यादा समय से गहलोत वर्सेज पायलट का विवाद चल रहा है. इसके चलते पिछले साल जबर्दस्त सियासी संकट के आसार भी बने, लेकिन गहलोत चाणक्य नीति चलते हुए सियासी भंवर से पार हो गए. सचिन पायलट और उनके समर्थकों के हिस्से कुछ भी नहीं आया. त​ब से राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल विस्तार भी अटका ही हुआ है.