मुंबई। शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे के साथ आने की संभावनाओं को लेकर महाराष्ट्र में अटकलों का बाजार गर्म है. वहीं इस मुद्दे पर दोनों पार्टियों के बीच जुबानी जंग भी शुरू है. दरअसल महाराष्ट्र की जनता में एक बड़ा तबका चाहे जिस भी पार्टी का वोटर हो, यह अक्सर पूछता रहा है कि क्या कभी महाराष्ट्र की राजनीति के ये ‘करण-अर्जुन’ साथ आएंगे? ज्ञात हो कि यह फिल्मी नाम हम नहीं दे रहे, राज ठाकरे ने ही कई बार अपनी सभाओं में राज-उद्धव के साथ आने से जुड़े सवाल का उत्तर देते हुए ‘करण-अर्जुन’ नाम का इस्तेमाल किया है. दरअसल पिछले दिनों एक वेबिनार में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे से फिर यह सवाल पूछ लिया गया कि आप दोनों भाइयों के साथ आने की क्या संभावनाएं हैं? राज ठाकरे ने उत्तर दिया कि ‘यह परमेश्वर को पता है.’ इसके बाद उन्होंने कहा कि ‘फिलहाल हालात को देखते हुए इस सवाल का कोई जवाब सूझता नहीं है. किसी और को यह पता हो, ऐसा लगता नहीं है.’ राज ठाकरे के इस बयान का उत्तर शनिवार को शिवसेना सांसद संजय राउत ने दिया. राउत ने कहा कि परमेश्वर किसी पार्टी के मेंबर नहीं होते. वे कभी मध्यस्थ की भूमिका नहीं अपनाते. इसलिए ऐसी बातें परमेश्वर पर छोड़ी नहीं जाती. जो परमेश्वर पर निर्भर होकर राजनीति करते हैं, परमेश्वर भी उनकी मदद नहीं करते हैं. राजनीति खुद ही करनी पड़ती है. इन शब्दों में संजय राउत ने राज ठाकरे द्वारा कही गई बातों का जवाब दिया. संजय राउत के इस बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति का तापमान बढ़ा दिया. जाहिर सी बात थी कि बात चुभ गई थी. अब जवाब भी आना था. जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ. मनसे की ओर से उत्तर आया. मनसे नेता अखिल चित्रे ने ट्वीट कर संजय राउत पर जुबानी हमला किया. उन्होंने लिखा कि संजय राउत ने सही कहा है कि राजनीति खुद करनी पड़ती है, पर उन्हें यह भी देखना चाहिए कि खुद की राजनीति कौन कर रहा है. मनसे प्रमुख राज ठाकरे अपनी राजनीति खुद कर रहे हैं. उल्टा शिवसेना को राजनीति में चुनाव लड़ने के लिए बालासाहेब ठाकरे के नाम का सहारा लेना पड़ता है. फिर क्या था, जवाब में यह कहा गया कि पार्टी केवल नेता की वजह से नहीं होती. कार्यकर्ताओं का जाल अहम होता है. नेता की वजह से पार्टी नहीं पहचानी जाती, पार्टी की वजह से नेता पहचाने जाते हैं. नेता को देखकर मतदान जरूर होता है, लेकिन आखिर में पार्टी की ताकत की अहमियत होती है. मोदी को देखकर लोग भाजपा को मतदान करते हैं, लेकिन भाजपा की संगठनात्मक शक्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.