
ग्वालियर : भारत के सपूत अपनी जान दांव पर लगाकर देश के दुश्मनों के आगे ढाल बनकर बॉर्डर पर तैनात रहते हैं. इसलिए सीमा पर तैनात देश के वीर जवानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हर भारतीय की होती है. यहीं दायित्व निभाने के लिए सीमा सुरक्षा बलों को सहयोग करने मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित टेकनपुर की रुस्तमजी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र और दो फैकल्टी मेंबर्स आगे आए हैं. वह मिलकर एक स्मार्ट बॉल लॉन्चर प्रोटोटाइप तैयार कर रहे हैं, जो सीमा पर तैनात होकर घुसपैठियों और आतंकियों को पहचानेगा.
टेकनपुर की एकेडमी के छात्रों का कमाल
ग्वालियर के टेकनपुर में बीएसएफ एकेडमी के अंतर्गत आरजेआईटी संस्थान में फैकल्टी कॉर्डिनेटर और स्टूडेंट्स के द्वारा एक क्लब संचालित किया जाता है. इस टीम में शामिल सभी सदस्य टेक्नोलॉजी से जुड़े साधारण प्रोजेक्ट तैयार किया करते थे और उन्हें राष्ट्रीय स्तर की प्रातस्पर्धाओं में भाग लेकर प्रेजेंट किया करते थे. लेकिन अब ये टीम भारत के सुरक्षा बलों से संबंधित प्रोजेक्ट भी बना रहे हैं. इसी तारतम्य में छात्रों और फैकल्टी मेंबर्स ने एक स्मार्ट मल्टी बैरल बॉल लॉन्चर तैयार किया है. जिसके सफल परीक्षण और डिफेंस द्वारा पास करने पर देश की सीमाओं पर इन्स्टॉल किया जाएगा.इस प्रोटोटाइप के बारे में जानकारी देते हुए आरजेआईटी के इस प्रोजेक्ट से जुड़े प्रोफेसर गौरव भारद्वाज ने ईटीवी भारत को बताया कि, ''उनकी टीम ने अभी एक बेसिक मॉडल तैयार किया है.'' इंस्टिट्यूट के प्रिंसिपल और बीएसएफ डीआईजी अमरीश कुमार आर्य के मार्गदर्शन में दो फैकल्टी कॉर्डिनेटर प्रो. गौरव भारद्वाज और प्रो. मुग्धा श्रीवास्तव इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहे हैं और इस पर उनके साथ चार सीनियर स्टूडेंट मेंबर्स अंकिता झा जो प्रोजेक्ट कप्तान हैं, दीपक पाल, स्नेहल धहिया, मिस संध्या और उनके साथ कॉलेज के कई छात्र सभी साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
इन फीचर्स से होगा लैस
प्रो. गौरव भारद्वाज ने बताया कि, ''यह मोडल बॉर्डर सिक्योरिटी में अहम भूमिका निभाएगा, क्योंकि यह देश की सीमाओं पर होने वाली घुसपैठ को रोकने में मदद करेगा. यह स्मार्ट मल्टी बैरल लॉन्चर एआई की मदद से घुसपैठ पर नजर रखेगा. एक हाई रिज्युलेशन कैमरा और फेस रेकग्निशन टेक्नोलॉजी से लैस यह मॉडल इंसानों और जानवरों में फर्क कर सेना को अलर्ट करेगा.''
कैसे तैयार होगा रोबो मॉडल
यह स्मार्ट मल्टी बेरल लॉन्चर तीन फेज में तैयार किया जाएगा जो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से लोड होगा. पहले फेज में रोबो मॉडल पर सिमुलेशन के जरिए मूवेबल ऑब्जेक्ट की पहचान करने पर काम किया जाएगा कि, बॉर्डर पर किसी भी संदिग्ध मूवमेंट तो नहीं.इसके बाद दूसरे फेज में यह मॉडल इंसान और जानवरों में फर्क कर सकेगा कि, बॉर्डर पर होने वाला मूवमेंट किसी इंसान का है या जानवर का. यह इंसानों और जानवरों में फर्क पहचान कर अलर्ट करने का काम करेगा. वहीं तीसरे फेज में इसे फेस डिटेक्शन सिस्टम से अपग्रेड किया जाएगा. यदि घुसपैठ करने वाला कोई इंसान होगा तो मॉडल इसकी जानकारी रिमोट बेस्ड कंट्रोल सिस्टम को देगा, जिससे डिफेंस फोर्स इसकी तहकीकात कर सके.
कैसे पहचान होगी सीमा पर जवान, घुसपैठिया या ग्रामीण ?
प्रो. गौरव भारद्वाज के मुताबिक, ''बॉर्डर पर घुसपैठिए को पहचानने के लिए फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा. जिसमें फेशियल एक्सप्रेशन के जरिए अंदाजा लगाया जाएगा कि, डिटेक्ट हुआ व्यक्ति कौन हो सकता है. इसके लिए 20 प्वाइंट्स फेशियल रिकग्निशन का इस्तेमाल किया जाएगा. जिसमें माथे से लेकर चिन तक और एक कान से लेकर दूसरे कान तक कुल 20 प्वाइंट्स पर चेहरे के हाव भाव पढ़े जा सकेंगे.''
''साथ ही मशीन लर्निंग के तहत सेना के टीम मेम्बर और सभी पहचान के लोगों के फेस इस मॉडल में पहले से फीड रहेंगे. जिससे कोई अन्य व्यक्ति अगर पकड़ में आता है तो देख जाएगा कि उसके एक्सप्रेशन क्या कहते हैं. क्योंकि, अमूमन आतंकी बहरूपिया बनकर भी घुसपैठ कर सकते हैं. ऐसे में चहेरे के एक्सप्रेशन से पता चल सकेगा की वह डरा हुआ है या झूठ बोल रहा है.''
आतंकियों की पहचान हुई तो आगे क्या होगा
प्रो. गौरव भारद्वाज ने बताया कि, ''अगर यह एआई बेस्ड रोबो मॉडल किसी घुसपैठिये या आतंकी की पहचान बॉर्डर पर करता है तो वह उसे रोकने में सक्षम होगा. जैसा हमने पहले बताया कि, ये रोबो मॉडल मूवेबल ऑब्जेक्ट को पहचानने का काम भी करेगा. ऐसे में इसे डिफेंस के हैवी आर्म सिस्टम से लेस किया जाएगा और घुसपैठ के दौरान आतंकी की पहचान होने पर इससे फायरिंग भी की जा सकेगी. इसे रिमोटली मैन्युअल ऑपरेट तो किया ही जा सकेगा, साथ ही इसका मशीन लर्निंग सिस्टम और एआई की मदद से कन्फर्मेशन होने पर ख़ुद भी घुसपैठिए पर फायर कर सकेगा.''
कब तक बनकर होगा तैयार, कितनी होगी लागत?
इस रोबो मॉडल को बनकर तैयार होने में करीब ढाई साल का समय लगेगा. जिसमें पहला फेज लगभग 1- डेढ़ साल में तैयार हो जाएगा. वहीं दूसरा और फाइनल फेज का काम होने में तैयार करीब 1 साल और लगेगा. वहीं लागत की बात की जाये तो इस प्रोजेक्ट को फाइनल स्टेज तक पहुंचकर फाइनल आउटपुट के लिए तैयार होने में करीब 25 से 30 लाख रुपये की लागत आएगी. हालांकि जब यह रोबो लांचर बनकर तैयार होगा तो सीमा पर तैनात हमारे देश जवानों के लिए काफी सहूलियत राहत और मददगार साबित होगा.