कहानी - देवी लक्ष्मी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। पुराने समय में महालक्ष्मी ने यह तय किया था कि वे असुरों के पास भी रहेंगी। इस बात से सभी देवता चिंतित थे। देवता आपस में इस बात की चर्चा करते थे कि देवी लक्ष्मी ने ये ठीक नहीं किया है।

एक दिन महालक्ष्मी असुरों को छोड़कर देवताओं के पास आ गईं। सभी देवताओं ने लक्ष्मीजी स्वागत किया, स्वर्ग में उत्सव मनाया गया। उत्सव मना रहे देवताओं से लक्ष्मीजी ने कहा, कोई मुझसे ये तो पूछे कि मैं लौटकर वापस क्यों आई हूं?'

देवताओं ने कहा, 'हमें लगा कि आपको हमारी याद आ गई होगी या आपको ये समझ आ गया होगा कि आपको किसके साथ रहना चाहिए।'

लक्ष्मीजी ने मुस्कान के साथ कहा, 'जो भी परिश्रम करेगा, अच्छे काम करेगा, मैं उसके पास रहूंगी। असुरों ने भी खूब परिश्रम किया। वे भी देवताओं की तरह कुछ बड़ा काम करना चाहते थे। मैं हर उस व्यक्ति के पास रहूंगी, जिसके जीवन में पुरुषार्थ होगा। कुछ नया करने का भाव होगा। कुछ अच्छे संकल्प होंगे, लेकिन असुरों को जब ये सब मिलने लगा तो वे अपने आचरण से गिर गए। उन्होंने मेरा उपयोग आतंक, हिंसा, वासना जैसे बुरे कामों में करना शुरू कर दिया। इसीलिए मैं उनको छोड़ आई हूं। अगर कोई अधर्मी व्यक्ति मुझे जबरदस्ती अपने पास रखेगा तो वह कभी शांति नहीं पा सकेगा। अधर्मी लोगों के साथ मैं दुखी हो जाऊंगी और मौका मिलते ही उन्हें छोड़कर चली जाऊंगी।'

सीख - लक्ष्मीजी धन, वैभव, संपत्ति के रूप में उन लोगों के पास रहती हैं, जो धर्म के अनुसार काम करते हैं। जो लोग मेहनत से कमाया गया धन बुरे कामों में खर्च करते हैं, जो लोग गलत कामों से, झूठ बोलकर, किसी को धोखा देकर धन कमाते हैं, उनके जीवन में अशांति रहती है।