एक धनवान सेठ के पास सुख-सुविधा की हर एक चीज थी। परिवार में भी सब कुछ अच्छा था, लेकिन उसके जीवन में शांति नहीं थी। एक दिन वह व्यापार के लिए एक जंगल में से गुजर रहा था।

जंगल में सेठ को एक आश्रम दिखाई दिया। वहां एक संत टूटी झोपड़ी में रह रहे थे। उनके पास न तो अच्छे कपड़े नहीं थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त खाना था। सेठ संत के पास पहुंचा और उसने संत को अपनी सारी परेशानियां बता दीं।

सेठ ने संत से पूछा कि आपके पास तो सुख-सुविधा की कोई चीज नहीं। न अच्छे कपड़े हैं, न ही खाने के लिए ज्यादा खाना है। फिर भी आप इतने शांत और प्रसन्न क्यों दिख रहे हैं?

संत ने सेठ की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कान के साथ संत ने एक कागज पर कुछ लिखा। कागज देते हुए संत ने सेठ से कहा कि इस कागज को घर ले जाओ और घर पहुंचकर इसे पढ़ना। इस कागज पर तुम्हारे लिए सुखी जीवन का सूत्र लिखा है।

सेठ कागज लेकर अपने घर पहुंच गया। सेठ ने कागज खोला तो उस पर लिखा था - जहां शांति और संतुष्टि रहती है, वहीं सुख रहता है।

धनवान सेठ को मालूम हो गया कि उसके जीवन में सुख-शांति क्यों नहीं है। इस प्रसंग के बाद सेठ ने भी संतुष्ट रहना शुरू कर दिया। अब वह धन के लिए परेशान नहीं होता था। जो मिल जाता, उसी में खुश रहता था। उसके जीवन में भी सुख-शांति आ गई।