नई दिल्ली : कोई भी व्यक्ति अपने निवेश पर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न पाना चाहता है। शेयर बाजार में रिटर्न बहुत आकर्षक है, लेकिन वहां जोखिम भी अधिक है। ऐसे में आम निवेशकों के पास तय अवधि के निवेश विकल्पों में बॉन्ड, डिबेंचर और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) का विकल्प है, जिसमें आकर्षक रिटर्न मिलने की उम्मीद रहती है। कई बार लोग बॉन्ड या डिबेंचर की रेटिंग देखकर ही उसमें पैसा लगाने का फैसला कर लेते हैं जो सही तरीका नहीं है। इसमें निवेश करते समय अन्य बातों का ध्यान रखें तो इसका आप ज्यादा फायदा उठा सकते हैं।

क्या है बॉन्ड और डिबेंचर
सरकारी कंपनियां जब बाजार से पूंजी जुटाने लिए णपत्र जारी करती हैं तो उसे बॉन्ड कहते हैं, जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियों की ओर से ऐसी पहल को डिबेंचर कहा जाता है। इसमें निवेश की अवधि और उस पर मिलने वाले ब्याज की जानकारी निवेशकों को शुरुआत में ही दे दी जाती है।

एनसीडी में ज्यादा रिटर्न
डिबेंचर दो तरह के होते हैं परिवर्तनीय डिबेंचर और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी)। जिस डिबेंचर को शेयरों में बदला जा सकता है उसे परिवर्तनीय डिबेंचर कहते हैं। एनसीडी को शेयरों में नहीं बदला जा सकता है। एनसीडी भी दो तरह की होती है सुरक्षित (सिक्योर) और असुरक्षित (इनसिक्योर)।

सुरक्षित श्रेणी की एनसीडी जारी करने के लिए कंपनी उतने मूल्य की संपत्ति की गारंटी देती है। यदि किसी वजह से कंपनी डूबती है तो उस संपत्ति को बेचकर निवेशकों की रकम वापस कर दी जाती है। इसकी वजह से निवेशकों के लिए इसमें जोखिम कम होता है। असुरक्षित श्रेणी की एनसीडी में कंपनियां किसी तरह की गारंटी नहीं देती हैं, जिसकी वजह से इसमें जोखिम ज्यादा होता है। हालांकि, असुरक्षित श्रेणी की एनसीडी में ब्याज दरें सामान्यत: अधिक होती हैं।

रेटिंग देखने का क्या है फायदा
बॉन्ड या एनसीडी को जब बाजार में पेश किया जाता है तो उसकी रेटिंग भी जारी होती है। क्रिसिल, इक्रा और केयर जैसी एजेंसियां रेटिंग जारी करती हैं। कंपनी की वित्तीय स्थिति, उसका प्रबंधन और पिछले वर्षों में उसके प्रदर्शन और उसमें निवेश में जोखिम आदि के आधार पर रेटिंग दी जाती है। एएए (ट्रिपल ए) वाली रेटिंग ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है। लेकिन समय से रेटिंग में बदलाव भी होता रहता है। बॉन्ड या एनसीडी के बाजार में आने पर जो रेटिंग दी जाती है उसमें कंपनी के प्रदर्शन के आधार पर बाद में बदलाव भी हो जाता है। ऐसी स्थिति में केवल रेटिंग देखकर निवेश करना महंगा पड़ सकता है।

कंपनी पर कितना है कर्ज
किसी कंपनी के बॉन्ड या एनसीडी में निवेश करने से पहले रेटिंग के साथ यह देखना भी जरूरी है कि उसपर कितना कर्ज है और वह कितना ब्याज चुका रही है। इसके लिए डेट इक्विटी रेशियो को आधार बनाया जाता है। जब बॉन्ड या एनसीडी जारी की जाती है तो उस समय निवेशकों को डेट इक्विटी रेशियो की भी जानकारी दी जाती है। हालांकि, इसके लिए कोई तय मानक नहीं है, डेट इक्विटी रेशियो 1.5 होना बेहतर माना जाता है। डेट इक्विटी रेशियो से इस बात की जानकारी मिलती है कि कंपनी पर कितना कर्ज है और उसे चुकाने लिए उसकी आमदनी कैसी है। यदि कर्ज की तुलना में कंपनी की आमदनी बेहतर है तो निवेशकों के लिए इसे फायदेमंद माना जाता है। डेट इक्विटी रेशियो से कंपनी की आक्रामक रणनीति का भी पता चलता है।

कैसा रहा है मुनाफा
एनसीडी या बॉन्ड में निवेश करने से पहले कंपनी के मुनाफे का आकलन करना न भूलें। बाजार की स्थितियों के मुताबिक कंपनियों के मुनाफे में उतार-चढ़ाव आता रहता है। लेकिन लगातार कंपनी के लाभ में गिरावट भी खतरे का संकेत होता है। इसमें इस बात का ध्यान रखें कि यदि मुनाफा कम हुआ है तो उसकी वजह क्या है।

किस क्षेत्र से जुड़ी है कंपनी
हर कंपनी किसी क्षेत्र विशेष में काम करती है और उसमें बदलाव का असर भी उसके कारोबार पर होता है। जब बाजार में ब्याज दरें अधिक होती हैं या उनमें बढ़ोतरी होती है तो रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की कंपनियों का कारोबार प्रभावित होता है जिसका असर उनके मुनाफे पर भी पड़ता है। इसी तरह बैंक और वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों की कर्ज में फंसी राशि (एनपीए) ज्यादा होती है तो उनका मुनाफा घट जाता है।

बैंक एफडी को न करें नजरअंदाज
बॉन्ड या एनसीडी में अधिक रिटर्न मिलने का यह मतलब नहीं कि आप पूरी कमाई उसी में ही निवेश कर दें। इसमें कमाई का एक हिस्सा ही निवेश करना चाहिए। सावधि जमा (एफडी) में रिटर्न भले ही ज्यादा आकर्षक न हो लेकिन यह सबसे अधिक सुरक्षित है। ऐसे में अपनी बचत का एक हिस्सा एफडी में जरूर डालें। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें छोटी अवधि से लेकर लंबी अवधि के लिए निवेश का भी विकल्प है। बच्चों की उच्च शिक्षा और उनके शादी-विवाह के खर्च के लिए आप लंबी अवधि की एफडी को चुन सकते हैं। पांच साल की एफडी पर टैक्स नहीं लगता है। हालांकि, यह टैक्स छूट निवेश की राशि पर ही मिलती है और ब्याज पर आपको टैक्स चुकाना पड़ता है।