कटनी DD कांड में था आरोपी, फर्जी डिमांड ड्राफ्ट बनाने के कई आरोप लगे थे; CBI कर रही जांच

केनरा बैंक में वर्ष 2016 में हुए फर्जी डीडी कांड, लोन प्रकरण में घिरा था तत्कालीन बैंक मैनेजर कृष्णकांत दुबे।
केनरा बैंक मैनेजर रहते हुए कई काली-पीले करने के चलते CBI जांच की जद में था पूर्व बैंक कर्मी
पिता को संबोधित सुसाइड नोट लिखकर पनागर के मगझगवां कॉलोनी के पास लगा लिया था कैनाल में छलांग

पनागर के मझगवां कॉलोनी के पास कैनाल में 15 मार्च को छलांग लगाकर जान देने वाला पूर्व बैंक कर्मी कटनी DD कांड में आरोपी था। वर्तमान में इस मामले की जांच CBI कर रही है। चार करोड़ रुपए से अधिक के इस घोटाले में कई शराब ठेकेदार भी आरोपी हैं। इसी फर्जीवाड़े के चलते 2017 में उसकी नौकरी चली गई थी, लेकिन वह घर वालों से झूठ बोलता रहा।

पुराना कंचनपुर निवासी रमेश चंद्र दुबे GIF से रिटायर्ड हैं। उनका इकलौता बेटा कृष्ण दत्त दुबे (28) सिविल लाइंस स्थित केनरा बैंक में मैनेजर था। जून 2016 में कटनी DD कांड उजागर होने एक साल बाद उसकी नौकरी चली गई थी। टीआई पनागर आरके सोनी के मुताबिक कृष्ण दत्त दुबे नौकरी चले जाने के बावजूद घरवालों से झूठ बोलता रहा।
 

CID, लोकायुक्त से होकर CBI तक पहुंचा है मामला

प्रकरण की पहले CID, फिर लोकायुक्त ने जांच की और अब मामला CBI के पास है। जांच में घिरे कृष्ण दत्त दुबे तनाव झेल नहीं पाया और उसने 15 मार्च को मझगवां कॉलोनी के पास से निकली कैनाल में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसकी बाइक बाइक एमपी 20 एमवाय 0273 लॉक खड़ी थी। बाइक में हेलमेट और एक बैग टंगा था। बैग की तलाशी में एक कागज में सुसाइड नोट लिखा मिला। इसी से उसकी पहचान हुई।
 

सुसाइड नोट में छलका था चार सालों के झूठ बोलने का दर्द

पोस्टकार्ड साइज पेपर पर सुसाइड नोट में लिखा था कि ‘पापाजी सब झूठ था, नौकरी 2017 में ही चली गई थी, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता, और यह कदम उठा रहा हूं, हो सके तो मुझे माफ कर देना, मैं बहुत अच्छा बनने के चक्कर में बहुत बुरा बन गया, किसी से नौकरी की बात नहीं हुई, सब पैसे बरबाद किये मैने सिर्फ दोस्ती के चक्कर में’। पनागर पुलिस की जांच में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है कि सुसाइड नोट उसी की लिखावट में है। डीडी कांड में घिरने और नौकरी चले जाने के तनाव में उसने सुसाइड किया था।
 

2016 में सामने आया था कटनी डीडीकांड

2016 में कटनी में शराब दुकानों का ठेका हुआ था। ठेका पिंटू उर्फ पुष्पेंद्र सिंह समूह को मिला था। उसने मार्जिन मनी के एवज में डिमांड ड्राफ्ट जमा किए थे। पहले तो एक महीने तक डिमांड ड्राफ्ट बैंक में कैश कराने के लिए लगाया नहीं गया। जब लगाया गया तो बैंक ने 17 डिमांड ड्राफ्ट कैश होने से रोक दिया। ये सभी डिमांड ड्राफ्ट फर्जी तरीके से बनाए गए थे।

ठेकेदार के खाते में इतनी रकम नहीं थी। केनेरा बैंक के तब के मैनेजर कृष्ण दत्त दुबे व अन्य लोगों ने मिलीभगत कर ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया था। यहीं नहीं विभिन्न नमों से बने फर्जी 13 डिमांड ड्राफ्ट एक्साइज विभाग द्वारा भेजने पर चार करोड़ की रकम कैश भी हो गए थे। बैंक के बैलेंस शीट के मिलान करने पर ये फर्जीवाड़ा उजागर हो गया।
 

बैंक के विजिलेंस विभाग ने सीबीआई को प्रकरण ट्रांसफर कर दिया था

मामले ने तूल पकड़ा तो बैंक के विजिलेंस विभाग ने सीबीआई को प्रकरण ट्रांसफर कर दिए थे। मामले में कृष्ण दत्त दुबे सहित डिप्टी मैनेजर अशोक कुमार साहू, अमृता सिंह को सीबीआई ने आरोपी बनाया था। नियम के अनुसार डिमांड ड्राफ्ट तभी बनते हैं, जब संबंधित के खाते में उतना पैसा हो। बैंक हर शाम को इसका मिलान भी करती है, पर इस प्रकरण में ऐसा कुछ नहीं किया गया था।
लोकायुक्त ने तत्कालीन कलेक्टर व आबकारी अधिकारी को बनाया था आरोपी
इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर प्रकाश जांगरे, आबकारी अधिकारी आरसी त्रिवेदी और शराब ठेकेदार के खिलाफ लोकायुक्त ने भी प्रकरण दर्ज किया था। फर्जी डिमांड के आधार पर ठेकेदार 25 दिनों तक शराब बेचता रहा। इससे शासन को छह करोड़ रुपए राजस्व का नुकसान हुआ था।
 

जैन ट्रस्ट की जमीन खरीदने में भी फर्जी डीडी बनाई थी

कृष्ण दत्त दुबे के खिलाफ सितंबर 2016 में ही एक और फर्जीवाड़ा में शामिल होने का प्रकरण उजागर हुआ था। ये मामला गढ़ा स्थित जैन ट्रस्ट की जमीन खरीदने से जुड़ा था। गढ़ा निवासी सुधीर नेमा ने जैन ट्रस्ट की जमीन खरीदने के लिए केनरा बैंक सिविल लाइन से 4 करोड़ की डीडी बनवाई थी। सुधीर ने ट्रस्ट को डीडी देने के बाद रजिस्ट्री भी करा ली, लेकिन जब ट्रस्ट ने डीडी भुगतान के लिए स्टेट बैंक मेडिकल में पेश किया तो उसका भुगतान नहीं हुआ। ट्रस्ट की केनरा बैंक के खिलाफ शिकायत करने पर बैंक ने आरटीजीएस करके ट्रस्ट के खाते में 4 करोड़ रुपए भुगतान कर दिया।
 

फर्जी लोगों के नाम-पते पर लोन व ओवरड्राफ्ट दिखाकर रकम ट्रस्ट को किया था ट्रांसफर

कटनी डीडीकांड प्रकरण सामने आने के बाद सीबीआई ने इसकी भी जांच की। पता चला कि बैंक कर्मियों ने डीडी बुक से डीडी निकाली और हाथ से भरकर नेमा को दे दी। इस डीडी को बैंक के कम्प्यूटर में नहीं चढ़ाया गया था। यहीं नहीं ट्रस्ट को जो चार करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था, वो भी कुछ लोगों के फर्जी नाम-पते पर लोन और ओवरड्राफ्ट दिखाकर किया गया था। तब सीबीआई ने कृष्णदत्त दुबे को गिरफ्तार कर सीबीआई कोर्ट में पेश करते हुए जेल भेजा था।