नई दिल्ली : बढ़ती उम्र में शरीर के कई अंग जवाब दे देते हैं लेकिन अल्जाइमर बीमारी में मरीज के दिमाग के काम करने की क्षमता कम हो जाती है और धीरे-धीरे उसका लोप हो जाता है। फिलहाल यह एक लाइलाज बीमारी है लेकिन फिर भी एक अच्छा सामाजिक माहौल निर्मित कर इससे बचा जा सकता है।
अल्जाइमर्स एंड रिलेटेड डिसऑर्डर्स सोसायटी ऑफ इंडिया, दिल्ली चैप्टर (एआरडीएसआई-डीसी) की सचिव रेनू वोहरा ने कहा, अल्जाइमर के बारे में सामाजिक रूप से जागरूकता की कमी है जिस वजह से हम लोग लंबे समय तक इसे नकारते रहते हैं। हम यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि हमारे किसी प्रियजन को यह बीमारी भी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें यह स्वीकार करने की जरूरत है कि अल्जाइमर किसी को भी हो सकता है... हमारे किसी अपने को भी और यह पागलपन नहीं है। लोगों के बीच इसकी स्वीकारोक्ति बढ़े उसके लिए उन्हें इसके बारे में शिक्षित करना होगा। उन्होंने अल्जाइमर के मरीजों के साथ सामाजिक सक्रियता और उन्हें भी सामाजिक रूप से सक्रिय बनाने की बात कही।
यहां नीदरलैंड के दूतावास में पालिसी एडवाइजर (पॉलिटिकल, पब्लिक डिप्लोमेसी एंड कल्चर) इला सिंह नीदरलैंड के होगवे का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि अल्जाइमर के मरीजों के लिए यह एक आदर्श गांव है। यहां पर अल्जाइमर के मरीजों के लिए सकारात्मक सामाजिक वातावरण का निर्माण किया गया है। इला कहती हैं कि अल्जाइमर के मरीज बच्चों जैसे होते हैं इसलिए उनका ध्यान भी विशेष रूप से रखना होता है। उन्हें समाज से काटना नहीं बल्कि उसका हिस्सा बनाना होता है।
इस बारे में रेनू का कहना है कि अल्जाइमर के मरीज बॉडी लैंग्वेज को बेहतर तरीके से समझते हैं इसलिए हमें चाहिए कि हम उनके साथ ज्यादा से ज्यादा बॉडी लैंग्वेज के माध्यम से ही बात करें। उन्हें बात बात पर ये न करें या ये करें की हिदायतें न देकर उन्हें उनकी बॉडी लैंग्वेज के आधार पर समझें और उन्हें अपनी बॉडी लैंग्वेज से समझायें। हमारा स्पर्श उन्हें राहत देने में मददगार होता है।
इला बताती हैं कि एक बार अल्जाइमर हो जाने पर इसका इलाज संभव नहीं है लेकिन हम अपनी दिनचर्या में थोड़े थोड़े बदलाव लाकर इससे बच सकते हैं। वे नीदरलैंड का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि वहां लोग ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियों में लगे रहते हैं।
भारत में आजकल जैसी तनाव भरी जिंदगी होती जा रही है और लोगों के बीच सामाजिक संवाद कम हो रहा है, वैसे में अल्जाइमर का खतरा बढ़ना लाजिमी है। इला कहती हैं अल्जाइमर से बचने का सबसे कारगर तरीका है कि आप खुश रहें और अपने आसपास के लोगों को भी खुश रखें ।
खुश रहें और अल्जाइमर से बचें
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