भोपाल।आखिरकार राज्य के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को भी अपने नियमों में ग्राम पंचायतों के कामकाज में जैव विविधता के कामकाज का उपबंध करना पड़ा है।
दरअसल जैव विविधता कानून 2002 में प्रावधान है कि जैव विविधता के संरक्षण के लिये ग्राम पंचायतों में समितियां बनेंगी। लेकिन पंचायत विभाग ने अपने कानून मप्र पंचायतराज एवं ग्रामस्वराज अधिनियम 1993 के तहत बने नियम मप्र ग्राम पंचायत स्थायी समिति के सदस्यों की पदावधि और कामकाज के संचालन की प्रक्रिया नियम 1994 में इसका प्रावधान नहीं किया था। इससे एमपी बायोडायवर्सिटी बोर्ड को बार-बार ग्राम पंचायत स्थाई समिति में जैव विधिता के कामकाज हेतु कहना पड़ता था। इधर एनजीटी ने भी इस बात पर आपत्ति ली थी। प्रदेश में जैव विधिता के संरक्षण का कार्य इसलिये सालों से पिछड़ता रहा।
मजेदार बात यह है कि राज्य सरकार ने 12 नवम्बर 2013 को ग्राम पंचायतों की स्थाई समिति में जैव विविधता के कामकाज का उपबंध करने ड्राफ्ट रुल्स जारी किये और इस पर तीस दिनों के अंदर दावे एवं आपत्तियां मंगाई लेकिन उसके बाद इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। अब सात साल बाद संशोधित नियमों को अंतिम रुप दे दिया गया तथा ये लागू कर दिये गये। इससे ग्राम पंचायतों को जैव विविधता का प्रात्साहन, संरक्षण, अविरत उपयोग और दस्तावेजीकरण एवं उनका मप्र जैव विविधता बोर्ड की तकनीकी सहायता एवं मार्गदर्शन के अनुसार प्रबंधन करना होगा।
उल्लेखनीय है कि जैव विविधता के संरक्षण एवं दस्तावेजीकरण करने के लिये ग्राम पंचायत में बारह सदस्यीय समिति बनाई जाती है जिसमें सात विषय विशेषज्ञ तथा पांच सदस्य वन, कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन एवं शिक्षा विभाग के कर्मी रहते हैं।
जैव विविधता बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि जैव विविधता कानून एवं पंचायत कानून में विसंगति थी, जिसे प्रयास कर अब दूर कर दिया गया है। इससे ग्राम पंचायत स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण विधिमान्य तरीके से हो सकेगा।