
प्रोफेसर बनने के लिए नेट, स्लेट या पीएचडी की डिग्री अनिवार्य है लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने 2004 में बिना नेट, स्लेट या पीएचडी किए एससी और एसटी वर्ग की भर्ती कर ली. उन्हे डिग्री हासिल करने के लिए दो साल का मौका भी दिया लेकिन 14 साल बीत जाने के बावजूद ये असिस्टेंट प्रोफेसर नेट, स्लेट या पीएचडी की डिग्री हासिल नहीं कर पाए.
नियुक्ति आदेश में 2 साल में ये परीक्षा पास न करने वालों की तत्काल सेवाएं समाप्त करने की बात कही गई थी. बावजूद इसके सरकार इस वर्ग की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है और चुनावी साल में तो बिल्कुल नहीं. इसलिए अब इनको तीन महीने का समय और दे दिया गया है.
मध्य प्रदेश में 2004 में एससी,एसटी के 863 असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती की गई थी. नियुक्ति आदेश में ये शर्त रखी गई थी कि नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों दो साल के अंदर नेट, स्लेट या पीएचडी की डिग्री अर्जित करनी होगी. निर्धारित अवधि में डिग्री अर्जित न करने वालों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से बिना सूचना दिए समाप्त कर दी जाएंगी.
इस हिसाब से 2006 में इनकी सेवाएं समाप्त हो जानी चाहिए थी लेकिन आज 14 साल बीत जाने के बावजूद ये प्रोफेसर न तो नेट,स्लेट और पीएचडी की डिग्री हासिल नहीं कर पाए ना ही सरकार इनको हटाने का कदम उठा पाई.
वहीं मध्य प्रदेश में प्रोफेसरों का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रोफेसर संघ इसमें अधिकारियों की गलती बता रहा है. संघ के प्रदेशाध्यक्ष प्रोफेसर कैलाश त्यागी का कहना है कि जब वो क्वालीफाई ही नहीं थे तो क्यों भर्ती किया गया.अधिकारी अपनी गलती छिपा रहे हैं.
बहरहाल, मध्य प्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव हैं और वो खास तौर से दलित वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती इसलिए लगातार उनको समय दे रही है, पहले इन प्रोफेसरों को 2009 का समय दिया गया और अब उन्हें दिसम्बर 2017 तक का समय दे दिया गया है.