नई दिल्ली। नए अधिकारों से लैस पूंजी बाजार नियामक सेबी ने सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए पीएसीएल लिमिटेड (पर्ल्स ग्रुप) को अवैध निवेश स्कीम बंद करने का आदेश दिया है। नियामक ने 92 पन्नों के आदेश में कहा है कि कंपनी निवेशकों से वसूली 50,000 करोड़ रुपये की रकम तीन महीने के भीतर लौटाए। कंपनी को 15 दिनों के भीतर स्कीम को बंद करने व रकम वापसी की रिपोर्ट सेबी के पास जमा करानी होगी। इसमें बताना होगा कि पैसों की वापसी के लिए धन की व्यवस्था कहां से की जाएगी। पीएसीएल ने कहा है कि वह सेबी के आदेश के खिलाफ प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल में जाएगी।
सेबी कंपनी, इसके नौ प्रमोटरों व निदेशकों के खिलाफ धोखाधड़ी और अनुचित कारोबारी गतिविधियों के लिए कानूनी कार्यवाही भी शुरू करेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सेबी के सामूहिक निवेश स्कीम (सीआइएस) नियमों के उल्लंघन को लेकर भी इन पर कार्रवाई होगी। इनमें तरलोचन सिंह, सुखदेव सिंह, गुरमीत सिंह, सुब्रत भंट्टाचार्य, निर्मल सिंह भंगू, टाइगर जोगिंदर, गुरनाम सिंह, आनंद गुरवंत सिंह व उप्पल देविंदर कुमार के नाम शामिल हैं। पीएसीएल व निर्मल सिंह भंगू समेत इसके शीर्ष अफसरों के खिलाफ सीबीआइ जांच भी चल रही है। कंपनी के प्रमोटर व डायरेक्टर पर्ल्स ग्रुप और पीजीएफ ग्रुप में भी शामिल हैं।
पीएसीएल ने खुद स्वीकार किया है कि उसने 49,100 करोड़ की भारी-भरकम रकम निवेशकों से जुटाई है। आदेश में कहा गया है कि यह राशि और भी बड़ी होती अगर कंपनी ने एक अप्रैल, 2012 से 25 फरवरी, 2013 के बीच जुटाई गई रकम की भी जानकारी दी होती। निवेशकों का आंकड़ा भी कोई छोटा-मोटा नहीं है। कंपनी ने यह रकम करीब 5.85 करोड़ निवेशकों से जमा कराई है। कई निवेशकों से जमीन देने के नाम पर रकम वसूली गई है।
यह किसी अवैध सीआइएस के तहत देश में निवेशकों से जमा कराई गई सबसे बड़ी राशि है। इसके निवेशकों की संख्या भी अब तक का सबसे बड़ा ग्राहक आंकड़ा है। यह सहारा समूह से भी बड़ा मामला है। सेबी की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपये लौटाने का आदेश दे रखा है।
पर्ल्स की यह स्कीम सेबी की निगरानी के अंतर्गत चल रहे सबसे लंबे समय से चल रहे मामलों में से एक है। बाजार नियामक से पीएसीएल को 16 साल पहले फरवरी, 1998 में ही आदेश दिया था कि वह न तो कोई नई योजना शुरू कर सकती है, और न ही मौजूदा स्कीमों के तहत पैसे जमा कराना जारी रख सकती है।
इस बीच, कंपनी कहती रही है कि वह कोई भी गैरकानूनी स्कीम नहीं चला रही है और असल में जमीन की बिक्री व खरीद का कारोबार कर रही है। सेबी ने 1999 में नोटिस जारी कर कंपनी पर सामूहिक स्कीम चलाने का आरोप लगाया था। इसमें कहा गया था कि कंपनी निवेशकों से जमा पैसों का जमीन खरीदने, रजिस्ट्री कराने, विकास शुल्क व अन्य खर्चो के लिए इस्तेमाल कर रही है।