भोपाल । मध्यप्रदेश की राजनीति में कद्दावर नेता की पहचान बनाने के बाद कैलाश विजयवर्गीय को बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने का फैसला राष्ट्रीय राजनीति में उनके पैर जमाने की कोशिशों का संकेत है। विजयवर्गीय उन चुनिंदा राजनेताओं में हैं जो सत्ता और संगठन का संचालन बखूबी जानते हैं। पिछले 12 सालों से वे प्रदेश में कैबिनेट मंत्री हैं। कांग्रेस शासनकाल में इंदौर जैसे महानगर के मेयर रह चुके हैं।
 
उनकी जड़ें सिर्फ मालवा या निमाड़ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे मप्र में उन्होंने अपने समर्थक जोड़ रखे हैं। ये कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं कि कैलाश व्यापक जनाधार वाले नेता हैं। नगर निगम के चुनाव में प्रदेश भर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद अगर किसी नेता की मांग थी तो वो नाम था कैलाश विजयवर्गीय। केंद्र में लाने से पहले उन्हें हरियाणा विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाकर प्रारंभिक परीक्षा ली जा चुकी है।
 
बाद में कुछ राज्यों का सदस्यता प्रभारी भी बनाया गया। कहने का आशय यह है कि पर्दे के पीछे रहकर वे अपनी रणनीति को अंजाम देना बखूबी जानते हैं। हरियाणा चुनाव में मिली सफलता के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। इसी सफलता के भरोसे वे राष्ट्रीय नेतृत्व में पहले अमित शाह और फिर उनके मार्फत नरेंद्र मोदी के करीब पहुंचे थे।
 
विजयवर्गीय को मिली नई जिम्मेदारी कहें या राष्ट्रीय राजनीति में उनकी स्थापना, यह प्रदेश की राजनीति में भी दूरगामी असर डालेगी। मप्र की ही बात की जाए तो अब तक प्रदेश में सेकंड लाइन नहीं थी। पार्टी ने कैलाश का कद बढ़ाकर न सिर्फ संतुलन बनाने की कोशिश की है, बल्कि सत्ता संगठन में नेतृत्व से जुड़े कई सियासी संकेत भी दिए हैं। खबर तो यहां तक है कि उन्हें छह राज्यों का प्रभारी भी बनाया जा सकता है।
 
राजनीतिक पंडितों की मानें तो उन्हें कुछ दिनों बाद होने वाले संगठन चुनाव में प्रदेश की बागडोर भी सौंपी जा सकती है। विजयवर्गीय को जी-तोड़ मेहनत के लिए भी जाना जाता है, उनकी महत्वाकांक्षाएं भी किसी से छिपी नहीं है। यही कारण है कि सदस्यता का काम मिलने पर उन्होंने सिंहस्थ के काम से भी खुद को मुक्त कर लिया था। अब वे 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत को मानकर सिर्फ संगठन का ही काम देखेंगे, ऐसे संकेत भी विजयवर्गीय दे चुके हैं।
 
संगठन में उनकी ताजपोशी के बाद प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार भी तय माना जा रहा है। बीजेपी की राजनीति में आगे जो भी बदलाव आएं, लेकिन यह तय है कि विजयवर्गीय ने भविष्य की राजनीति के लिए अपना बेहतर मुकाम बना लिया है। इस बदलाव ने एक सवाल जरूर छोड़ दिया है कि उनके राष्ट्रीय राजनीति में जाने से मालवा निमाड़ में उनका विकल्प क्या होगा और उसकी भरपाई कैसे होगी।