बेंगलुरु : एक साल पहले उलसूर से शुरू हुए फूड आउटलेट ने हाल ही में चर्च स्ट्रीट में दूसरा आउटलेट खोला है। स्मॉलीज़ नाम का यह फूड आउटलेट वैसे तो अपनी बीफ आइटम्स के लिए जाना जाता है, मगर यहां पर लगी एक 'वॉल आर्ट' में खाने की आजादी के साथ-साथ 'अभिव्यक्ति की आजादी' की भी हिमायत की गई है। यहां लगा एक कार्टून इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है।

हमारे सहयोगी अखबार 'बेंगलुरु मिरर' के मुताबिक यहां दीवार पर बहुत सारे पोस्टर्स में तो रसीले बीफ की तरफ ललचाने की कोशिश की गई है, मगर बीच में एक कार्टून सा लगा हुआ है। इसमें एक गाय का स्केच है, जिसमें एक तरफ हिटलर का छायाचित्र है तो दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी का। नीचे लिखा है, 'बीफ खाना हमारी पहचान है। बीफ बैन ऐतिहासिक जड़ता है।'

मोदी की हिटलर के साथ तुलना पहले भी होती रही है, फिर चाहे वह 2002 में हुए दंगों की बात हो या कथित तानाशाही रवैये की। मगर बीफ बैन के फैसले के चलते इस पोस्टर में हिटलर की विकृत मानसिकता से तुलना कर देना थोड़ा अटपटा जरूर लगता है। मगर रेस्तरां का कहना है कि भारत लोकतांत्रिक देश है और यहां पर किसी को भी कुछ भी खाने या कहने का अधिकार है।

स्मॉलीज़ के पार्टनर और वॉल पर ऐसी चीज़ें लगाने की जिम्मेदारी संभालने वाले निखिल हेगडे कहते है, 'हम किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते। हमारा मानना है कि हर किसी को अपनी पसंद के हिसाब से खाने की आजादी होनी चाहिए। भारत लोकतांत्रिक देश है और मुझे लगता है कि बीफ खाने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है।'

मगर मोदी ही क्यों? इस सवाल पर हेगड़े कहते हैं, 'मैं उनकी कई सारी नीतियों का प्रशंसक हूं। मगर खान-पान पर भी पाबंदी स्वीकार नहीं है। बीफ बैन के अलावा गुजरात में तो शराब पर भी पाबंदी है। मुझे लगता है कि यह सही नहीं है।' निखिल ने कहा, 'अभी तक किसी कस्टमर ने हमारे बीफ बेचने पर आपत्ति नहीं जताई है। हमारी करीब 50 फीसदी सेल बीफ बर्गर से ही होती है। मेरा अनुभव कहता है कि यहां के 80 फीसदी नॉन-वेज पसंद करने वाले ग्राहक तो बीफ ही खाते हैं।'

हेगडे ने बताया कि बीफ बैन से बिजनस पर भी असर पड़ा है। उनके एक दोस्त की बिक्री में 60 फीसदी की गिरावट आई है। मीट बेचने वाले और कसाई कम हो हो गए हैं। अब लोगों को बफैलो पैटी से काम चलाना पड़ रहा है, जो स्वाद के मामले में बीफ बर्गर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती।'

स्मॉली खाने के साथ-साथ अपने यहां लगी स्ट्रीट आर्टस और ग्रैफिटी वगैरह से सामाजिक और पॉलिटिकल ऐक्टिविटी भी कर रहा है। पश्चिमी देशों में तो पहले से ही इसका खूब चलन है। हो सकता है कि यह पब्लिसिटी स्टंट हो, मगर यह दोधारी तलवार भी है। हो सकता है कि इससे नरेंद्र मोदी के प्रशंसक आपके यहां आना ही पसंद न करें।