नई दिल्ली : चाहे जितनी पढ़-लिख जाएं और कितना भी बड़ा ओहदा क्यों न हासिल कर लें, लेकिन जब बात जिगर के टुकड़े की आती है तो वह अपने करियर को भी दांव पर लगा देती हैं। उनकी प्राथमिकता शोहरत नहीं बल्कि अपने बच्चे की अच्छी परवरिश होती है। वह अपनी आंखों के सामने उसे बढ़ते हुए देख इन यादों को संजो लेना चाहती हैं। एसोचैम द्वारा मदर्स डे के उपलक्ष्य में देशभर की महिलाओं पर किए गए सर्वेक्षण में उनका यही त्याग सामने आया है। हालांकि, कई महिलाएं बच्चे के बड़ा होने के बाद फिर से अपना करियर संवारना चाहती हैं। लेकिन उन्हें कार्य स्थल पर भेदभाव का डर सताने लगता है, जिससे वह अपना पांव पीछे खींच लेती हैं।
देश की युवा कामकाजी माताओं के बीच किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि शहरी इलाकों में उच्चशिक्षा प्राप्त उन माताओं की बड़ी तादाद है जो अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए पेशेवर जिंदगी और करियर को छोड़कर घर पर रह रही हैं।
एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, अहमदाबाद, बेंगलूरु, हैदराबाद, इंदौर व जयपुर में 25 से 30 वर्ष की आयु वर्ग की माताओं को शामिल किया गया। इनमें सभी ऐसी महिलाएं थीं जो हाल ही मां बनी हैं। इनसे मा बनने के बाद उनकी पेशेवर जिंदगी के बारे में पूछा गया था।
30 फीसद महिलाओं ने शिशु की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी
पहले बच्चे को जन्म देने वालीं 30 फीसद महिलाओं ने सर्वे में बताया कि उन्होंने अपने शिशु की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ दी है। इसी तरह 20 फीसद ने कहा कि उन्होंने बच्चों की परवरिश के लिए अपनी नौकरी पूरी तरह छोड़ने का फैसला किया है। हालाकि, काफी संख्या में व्यवसायी माताओं ने कहा कि बच्चे जब स्कूल जाने लगेंगे तो वह फिर से अपना करियर शुरू करना चाहती हैं।
भेदभाव से लगता है डर
वहीं, सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि माताओं को दोबारा करियर शुरू करने में भेदभाव होने का डर रहता है। काफी संख्या में महिलाओं ने इस डर से फिर से नौकरी नहीं करने की बात कही है।
संयुक्त परिवार में होती है सुविधा
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने सर्वेक्षण के बारे में बताया कि एकल परिवार की महिलाओं को अपने बच्चे की परवरिश तथा करियर के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है। जिंदगी से जुड़े तनाव और भावनात्मक पसोपेश के साथ ही पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबद्धताओं की वजह से इन्हें नौकरी छोड़ने का फैसला करना पड़ता है। वहीं, संयुक्त परिवार में इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
यादगार लम्हों से वंचित नहीं होना चाहतीं
सर्वे में शामिल बहुत सी माताओं ने कहा कि वे अपने बच्चों के बड़े होने के यादगार लम्हों के अनुभव से वंचित नहीं होना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने घर में ही काम शुरू किया है। इससे वह काम और बच्चे दोनों के साथ न्याय कर सकेंगी।
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