मनोबल के विकास का दूसरा सूत्र बताया गया है- स्व दर्शन समता का दर्शन या परमात्मा का दर्शन। प्रांस की यूनिवर्सिटी का एक प्रोफेसर अहंकार में आकर बोला, 'मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ  आदमी हूं।' किसी ने पूछ लिया-यह कैसे? उसने कहा, 'प्रांस दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश है। पेरिस प्रांस का सर्वश्रेष्ठ नगर और हमारा विश्वविद्यालय हमारे नगर का सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र। दर्शन का विभाग उसमें सर्वश्रेष्ठ। मैं उसका अध्यक्ष। इसलिए मैं सर्वश्रेष्ठ आदमी। यह कैसा गणित है! हमारी दृष्टि जब दूसरों की ओर जाती है तो यही निष्कर्ष निकलता है कि हम दूसरों को काटते जाते हैं, तोड़ते जाते हैं और दूसरों के संदर्भ में हम अपने को सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठापित करते जाते हैं। इसके अतिरिक्त कोई निष्कर्ष निकलता ही नहीं है। जब स्व-दर्शन में आदमी आता है तो उसे अनुभव होता है कि न प्रांस सर्वश्रेष्ठ, न पेरिस सर्वश्रेष्ठ, न विश्वविद्यालय सर्वश्रेष्ठ, न दर्शन का विभाग सर्वश्रेष्ठ और न विभागाध्यक्ष। सब समान है। सब व्यक्ति समान, सब देश समान, सब राष्ट्र समान और सब आत्माएं समान।  
जो समता के क्षण में जाता है, उसे यह नहीं लगता कि यह अलग, वह अलग। उसे लगता है कि सब मेरे-जैसे हैं। यह समान ही समान का गणित ऍसा चलता है कि अनन्त में से अनंत निकालो तो भी पीछे अनन्त ही रहेगा। अनन्त में अनन्त मिलाओ तो भी अनन्त ही रहेगा। समता में मिलाते जाओ, निष्कर्ष समता। यह समता की अनुभूति जब जागती है, तब एक विचित्र अनुभव होता है। उसे जगाने का जो सूत्र है, वह मनोबल को जगाने का परम सूत्र होता है।