सेठ अनंत ठकराल अपने बच्चों की अध्यापिका सीमा यूलिमा का हिसाब चुकता करना चाहते थे। महीना पूरा हुआ, तो उन्होंने सीमा को बुलाकर कहा, सोचता हूं कि तुम्हारा हिसाब चुकता कर दिया जाए। तय हुआ था कि तुम्हें महीने के तीन सौ रुपये मिलेंगे, हैं न?
नहीं, तीन सौ पचास। सीमा ने कहा। फिर सेठ बोला, तुमने हमारे यहां दो महीने तक बच्चों को पढ़ाया है। उसने कहा, नहीं, दो महीने पांच दिन। इस पर सेठ ने फिर याद दिलाया, नहीं, पूरे दो महीने। और इन दो महीनों के नौ रविवार भी निकाल दो। फिर तीन छुट्टियां... नौ और तीन बारह, तो हिसाब में एक सौ बीस रुपये कम हुए।
शामली चार दिन बीमार रही, उन दिनों तुमने सिर्फ कांचा को ही पढ़ाया और फिर तीन दिन तुम्हारे दांत में दर्द रहा। उस समय मेरी पत्नी ने तुम्हें छुट्टी दे दी थी। इन सबके पैसे घटा दिए जाएं, तो बाकी रहे चार सौ दस, ठीक है?
सीमा की आंखों में आंसू भर आए। इसके बाद भी सेठ ने हिसाब लगाना जारी रखा। उन्होंने कहा, तुमने कप-प्लेट तोड़ डाले। बीस रुपये इनके घटाओ। तुम्हारी लापरवाही से कांचा ने पेड़ पर चढ़कर अपना कोट फाड़ डाला था। पच्चीस रुपये उसके और फिर तुम्हारी लापरवाही के कारण ही नौकरानी शामली के बूट लेकर भाग गई। दस रुपये उसके कम हुए। इतना ही नहीं, दस जनवरी को पंद्रह रुपये तुमने उधार लिए थे। इस तरह चार सौ दस में से सत्तर रुपये घट गए। बाकी रह गए तीन सौ चालीस।
सीमा की आंखों में आंसू उमड़ आए। उसने हौले से कहा, धन्यवाद! और जाने को तैयार हो गई। सेठ ने अचंभित होकर पूछा, तुमने धन्यवाद क्यों कहा? वह बोली, पैसों के लिए। सेठ उसे जाते हुए देखता रहा। उसे लगा कि सीमा उसे परास्त कर चली गई है। वह सोचने लगा कि दुनिया में ताकतवर बनना कितना आसान है।
ताकतवर बनना है, जानिए कितना आसान है यह काम
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