मुंबई : आम बीमारियों के इलाज के लिए भी ऐंटीबायोटिक्स के बढ़ते उपयोग से चिंतित नोबेल विद्वान डा. जान रोबिन वारेन ने चेताया है कि अगर ऐंटीबायोटिक्स का अत्यधिक उपयोग रोका नहीं गया तो ‘विपदा’ आ सकती है।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस में हिस्सा लेने मुंबई आए वारेन ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि वैश्विक रूप से अभी के मौजूदा विषयों में से एक ऐंटीबायोटिक्स का बढ़ता उपयोग और ऐंटीबायोटिक्स के प्रति बढ़ता प्रतिरोध है। अगर इसका बढ़ना जारी रहा तो हम परेशानी में पड़ने जा रहे हैं।’
उन्होंने मेडिकल अनुसंधान को चुनौतियों के वैश्विक परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में कहा, ‘जब जरूरत ना हों तो डाक्टरों को ऐंटीबायोटिक्स लेने का परामर्श देना बंद करना चाहिए।’ वारेन ने कहा, ‘मरीज भी सर्दी-जुकाम जैसी चीजों में डाक्टरों से ऐंटीबायोटिक्स लेने का परामर्श देने को कहते हैं जबकि डाक्टर को मालूम है कि ऐंटीबायोटिक्स कोई मदद करने नहीं जा रहा है। इसलिए, उसे मरीज को यह नहीं देना चाहिए। लेकिन मरीज की मांग पर लोग करते हैं।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि ऐंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोध जन-स्वास्थ्य के लिए एक ‘बड़ा वैश्विक खतरा’ है। वारेन से जब पूछा गया कि क्या इस रिपोर्ट के बाद ऐंटीबायोटिक्स के नुस्खे लिखे जाने में कमी आई है तो उन्होंने कहा, ‘यह बहुत कठिन स्थिति है। अभी यह विपदा नहीं है, लेकिन आसानी से बन सकती है।’
वारेन ने कहा, ‘(डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के बाद) मैंने चीजें सुधरते नहीं देखी।’ उल्लेखनीय है कि वारेन को ‘बैक्टिरीयम हेलीकोबैक्टर पायलोरी’ की खोज और गैस्ट्राइटिस एवं पेप्टिक अल्सर रोगों में उसकी भूमिका पर 2005 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उन्होंने कहा, ‘जब हमने अपना सफर शुरू किया था तो वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकिक उपकरण विकसित नहीं थे। विज्ञान मानता था कि पेट में बैक्टिरीया विकसित नहीं हो सकते हैं, अच्छी बायोप्सी दुर्लभ थी और कोई क्लिनिकल नमूने नहीं थे।’ वारेन ने कहा, ‘मेडिकल बिरादरी गैस्ट्राइटिस को ठीक से नहीं समझ सकी थी। लेकिन हम निराश नहीं हुए, संकल्प के साथ प्रयोग करते रहे और सालों के समर्पित कठिन कार्य के बाद बैक्टिरीयल प्रजाति की खोज की।’
उन्होंने कहा, ‘यह एक चमत्कार था और इसने मानव जीवन को ज्यादा उत्पादक एवं स्वस्थ बनाने के लिए गैस्ट्राइटिस और पेप्टिक अल्सर के नए इलाज की खोज कर नई राहें खोलीं।’