ग्वालियर | मुरार थाने में नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपित की मदद करने के मामले में हाई कोर्ट की एकल पीठ ने पुलिस की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस भरोसे लायक नहीं है। कोर्ट के पास जांच के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए मामला सीबीआइ को स्थानांतरित किया जाता है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अनिल मिश्रा ने तर्क दिया कि आदित्य सिंह भदौरिया ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म कर मारपीट की। मुरार थाना पुलिस के पास जब शिकायत लेकर पहुंचे तो उल्टा पुलिस नाबालिग को परेशान करने लगी। साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ भी की है। थाने में अवैध रूप से बंधक बनाए रखा। पुलिस बयान बदलने के लिए दवाब भी बनाती रही। नाबालिग गायब होने पर हेवियस कार्पस भी दायर की। कोर्ट ने पुलिस से इस संबंध में जवाब मांगा। मामले की स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को तलब कर लिया था। 17 जून को पुलिस अधीक्षक अमित सांघी वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से न्यायालय के सामने उपस्थित हुए। 17 जून को बहस के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। बुधवार को इस मामले में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मामले में आरोपित पर तो कार्रवाई नहीं, उल्टा पीड़िता व उसके परिवार को पुलिस प्रताड़़ित करने में लगी रही। ऊपर से लेकर नीचे अधिकारियों ने आरोपित के बाबा गंगा सिंह भदौरिया के कहने पर कार्य किया। पुलिस की जांच दूषित है। इसलिए निष्पक्ष जांच कराना जरूरी है।इस पर अदालत ने पुलिस की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस भरोसे लायक नहीं है। कोर्ट के पास जांच के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए मामला सीबीआइ को स्थानांतरित किया जाता है।
हाईकोर्ट की पुलिस की भूमिका पर टिप्पणी
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