बिहार की सियासी तपिश बढ़ने के साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी-आर) के प्रमुख चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. चिराग अभी मोदी सरकार में मंत्री हैं, लेकिन उन्होंने केंद्र की राजनीति के बजाए बिहार की सियासत में किस्मत आजमाने का फैसला किया है. यही नहीं किसी आरक्षित सीट की जगह किसी जनरल सीट से चुनाव लड़ने का भी फैसला किया है. चिराग के बिहार की राजनीति में उतरने का दांव आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की युवा सियासत और लोकप्रियता को काउंटर करने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है या फिर एलजेपी की सियासी ख्वाहिश?
बिहार के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव पहली पंसद बने हुए हैं. सीएम नीतीश कुमार से दोगुना लोकप्रियता तेजस्वी की है. इंडिया ब्लॉक ने भले ही तेजस्वी को सीएम पद का चेहरा घोषित न किया हो, लेकिन उन्हीं की अगुवाई में इस बार का चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इस तरह तेजस्वी बनाम नीतीश के बीच बिहार का चुनाव सिमटता जा रहा है. ऐसे में चिराग पासवान ने बिहार चुनाव लड़ने का ऐलान कर अपनी दावेदारी भी पेश कर दी है, जो तेजस्वी के लिए एक चुनौती है तो यह नीतीश के लिए भी किसी टेंशन से कम नहीं.
बिहार के रण में चिराग ने ठोकी ताल
सियासत में चिराग पासवान ने 2014 में कदम रखा था और उसके बाद से लगातार लोकसभा चुनाव ही लड़ते रहे हैं. इस दौरान दो बार विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन एक बार भी किस्मत नहीं आजमाई. अब 2025 के विधानसभा चुनाव में वह पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरेंगे. एलजेपी की बैठक में सोमवार को केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर फाइनल मुहर लगी. साथ ही एलजेपी ने यह फैसला भी लिया कि चिराग अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट की जगह सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे.
चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव में उतारने का फैसला बिहार की राजनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि चिराग पासवान बिहार में अपनी सियासी ताकत बढ़ाना चाहते हैं, उनकी अपनी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी हैं. चिराग बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं. उनके चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों की सियासत पर असर पड़ सकता है. इसी रणनीति के तहत उन्होंने केंद्र में मंत्री रहते हुए भी विधानसभा चुनाव लड़ने की दांव चला है.
तेजस्वी का काउंटर प्लान हैं चिराग
नीतीश कुमार अब उम्रदराज हो रहे हैं और उनकी राजनीतिक पकड़ भी कमजोर हो रही है. वह 2025 में एनडीए का चेहरा जरूर हैं, लेकिन 2020 में बीजेपी उन्हें आगे करके सियासी नतीजे देख चुकी है. ऐसे में चिराग पासवान की पार्टी को लगता है कि आगे चलकर एनडीए में एक ऐसे चेहरे की जरूरत होगी, जिसे चिराग पासवान पूरा कर सकते हैं. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव की जिस तरह की लोकप्रियता बिहार में देखी जा रही है, वो जेडीयू के साथ-साथ बीजेपी और उसके घटक दलों को जरूर चिंता में डाल रही है.
इंडिया टुडे सी वोटर सर्वे के मुताबिक आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा के तौर पर सबसे ज्यादा लोगों ने पसंद किया है. मई में 36.9 फीसदी लोगों ने सीएम के तौर पर तेजस्वी को पसंद किया जबकि 18.4 फीसदी लोग नीतीश कुमार को एक बार फिर सीएम के रूप में देखना चाहते हैं. सीएम के रूप में प्रशांत किशोर को 16.4 फीसदी, चिराग पासवान को 10.6 फीसदी और सम्राट चौधरी को 6.6 फीसदी लोगों ने पंसद किया है. इस तरह एनडीए के किसी भी नेता से तेजस्वी काफी आगे नजर आ रहे हैं.
बिहार में जिस तरह से तेजस्वी का सियासी ग्राफ लगातार बढ़ा है और नीतीश कुमार का ग्राफ कम होता चला गया है, उससे सबसे ज्यादा चिंता बीजेपी की है. बिहार का चुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है. बीजेपी किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. बीजेपी 2020 में नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ी थी और एनडीए के हाथों से सत्ता जाते-जाते बची थी. इसीलिए बीजेपी इस बार बहुत ही सावधानी बरत रही है. एनडीए जरूर सीएम नीतीश के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन तेजस्वी की लोकप्रियता का भी ख्याल रख रही है.
तेजस्वी यादव के सामने चिराग पासवान एक युवा चेहरा होंगे, बिहार में युवा नेता के तौर पर सिर्फ तेजस्वी का नाम ही सबसे आगे है. उन्हें लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत भी मिली है. जातिगत समीकरण भी उनके साथ हैं. बिहार के दो-तिहाई मतदाताओं (मुस्लिम-यादव) पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. ऐसे में चिराग विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो तेजस्वी की चुनौती बढ़ जाएगी.
चिराग में बीजेपी देख रही फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसला बीजेपी के बैकअप प्लान का हिस्सा है. इसीलिए बीजेपी के तमाम बड़े नेता चिराग पासवान के फैसले का स्वागत कर रहे हैं. बीजेपी के प्रदेश अध्यश्र दिलीप जायसवाल ने चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे एनडीए को फायदा होगा. बिहार में वह जहां भी चिराग जाते हैं, उन्हें देखने-सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है.
चिराग पासवान भी कहते हैं कि हमारी पार्टी इस बात का मूल्यांकन कर रही है कि मेरे चुनाव लड़ने से फायदा होगा या नहीं. एक बात साफ है कि जब राष्ट्रीय नेता राज्य में चुनाव लड़ते हैं तो इससे आपकी स्थिति मजबूत होती है. बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में अपने कई सांसदों को मैदान में उतारकर दांव आजमाया है और इसका उसे फायदा भी मिला है. ऐसे में चिराग के विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने के कदम से एलजेपी के स्ट्राइक रेट और एनडीए के प्रदर्शन में फायदा भी हो सकता है.
चिराग पासवान सीएम फेस की लोकप्रियता के मामले में तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर से पीछे जरूर हैं. लेकिन फरवरी से मई के बीच उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. सर्वे के मुताबिक फरवरी में 3.7 फीसदी, अप्रैल में 5.8 फीसदी और मई में 10.6 फीसदी लोगों ने उन्हें सीएम चेहरे के तौर पर पसंद किया. इस तरह उनकी लोकप्रियता बीजेपी नेता सम्राट चौधरी से कहीं ज्यादा है. इस बात को बीजेपी भी बाखूबी समझ रही है.
चिराग की सियासी महत्वाकांक्षा
चिराग पासवान की सियासी महत्वाकांक्षा आज की नहीं है. उन्होंने पहले भी कहा था कि बिहार मुझे पुकार रहा है. बिहार मेरी हमेशा से प्राथमिकता रही है और अगर पार्टी कहेगी तो मैं विधानसभा चुनाव लड़ूंगा. मैं अभी सांसद हूं, लेकिन अब लगता है कि मुझे बिहार में ही रहकर काम करना चाहिए. मेरा सपना है कि बिहार के युवाओं को अपना प्रदेश छोड़कर बाहर ना जाना पड़े. इस तरह वह बिहार का चेहरा बनना चाहते हैं.
वह जब से राजनीति में आए हैं, तब से ही उन्होंने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया था. वह लगातार युवाओं की बात करते रहे हैं. चिराग पासवान हमेशा कहते हैं कि उनकी राजनीति बिहार केंद्रित है और उनका विजन विकसित-आत्मनिर्भर बिहार का संकल्प है. यह तभी संभव है जब वे खुद बिहार में रहकर नेतृत्व करेंगे. इसी तरह चिराग पासवान बिहार में अपने लिए सियासी मौका देख रहे हैं और एनडीए का चेहरा बनने के सपना संजोये हुए हैं.
सर्वजन के नेता बनने का भी प्लान
चिराग पासवान का सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला भी एक बड़ा दांव माना जा रहा है. वह जातिवादी राजनीति से दूर रहने की कोशिश करते हैं, जो आज की युवा पीढ़ी को पसंद है. चिराग युवा वर्ग में जातिगत दायरे से बाहर भी लोकप्रिय हैं. नए जेनरेशन को वह इसलिए पसंद हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भाषणों में कभी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश नहीं की. अब जब उन्होंने सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है तो वह यह संदेश देना चाहते हैं कि वह सक्षम हैं और उनकी स्वीकार्यता सभी वर्गों में है.
सामान्य सीट से चुनाव मैदान में उतरकर चिराग यह भी बताना चाहते हैं कि रिजर्व कैटेगरी की सीट को वह कमजोर तबके के नेता के लिए खाली छोड़ेंगे, जो एक बड़ा राजनीतिक संदेश होगा. इस तरह चिराग पासवान खुद को दलित दायरे में रखने के बजाय सर्वजन के नेता बनने की फिराक में हैं. इसीलिए वो एक के बाद एक बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं.