लंदन : भारत में जन्मे ब्रिटिश लेखक नील मुखर्जी वर्ष 2014 के बुकर पुरस्कार की दौड़ में ऑस्ट्रेलियाई उपन्यासकार रिचर्ड फ्लैनागन से हार गए हैं। फ्लैनागन को उनके उपन्यास 'द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ' के लिए बुकर पुरस्कार प्रदान किया गया जो बर्मा रेलवे में युद्धबंदियों की कहानी पर आधारित है।
तस्मानिया में पैदा हुए फ्लैनागन का यह छठा उपन्यास है जिसकी कथा वस्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में थाइलैंड बर्मा डेथ रेलवे के निर्माण के दौरान के कालखंड के घटनाक्रमों को समेटे हुए है।जिस दिन फ्लैनागन ने अपने इस उपन्यास की अंतिम पंक्ति को पूरा किया, उसी दिन उनके 98 वर्षीय पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया जो खुद रेलवे की त्रासदी से जिंदा बचे लोगों में शामिल थे। इस रेलवे का निर्माण 1943 में युद्धबंदियों और बंधुआ मजदूरों ने किया था।
फ्लैनागन ने हालांकि कहा कि उन्हें बुकर पुरस्कार जीतने की उम्मीद नहीं थी। पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष ए सी ग्रेलिंग ने फ्लैनागन के उपन्यास को एक शानदार प्रेम कथा और साथ ही मानवीय पीड़ा और साहस की अदभुत गाथा बताया।
चयन समिति के जजों ने कहा कि यह किताब इस युद्ध में फंसे सभी लोगों के संबंध में बताती है कि उन्हें इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
नायकवाद के अर्थ पर सवाल उठाती यह किताब उन वजूहात को तलाशती है जो किसी को भी नशंसता की चरम सीमाओं को पार करने वाली गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रेरित करती है। यह सवाल उठाती है कि क्यों कोई इंसान हैवानियत की सारी सीमाओं के परे चला जाता है। इसमें यह भी बताया गया है कि ऐसी नशंसता के शिकार न केवल पीड़ित बल्कि उन्हें अंजाम देने वाले भी होते हैं।
फ्लैनागन को डचेज ऑफ कार्नवाल कैमिला पार्कर बाउल ने लंदन के गिल्डहाल में एक शानदार समारोह में यह पुरस्कार प्रदान किया। पहले ऐसा माना जा रहा था कि कोलकाता में पैदा हुए मुखर्जी को इस वर्ष का बुकर पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
बुकर की दौड़ में शामिल हुई उनकी दूसरी किताब द लाइव्स ऑफ अदर्स, 1960 के कोलकाता की कहानी है जो इस वर्ष मई में प्रकाशित हुई थी। यह किताब 1960 के कोलकाता में घोष परिवार के इर्दगिर्द घूमती है और राजनीतिक आंदोलन की पृष्ठभूमि में परिवार के भीतर चलती प्रतिद्वंद्विता और रहस्यों को कहानी के तारों से बुनते हुए आगे बढ़ती है।
ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में शिक्षित मुखर्जी टाइम्स तथा संडे टेलीग्राफ के लिए साहित्य की समीक्षा करते हैं और उनके पहले उपन्यास ए लाइफ अपार्ट को भारत में वोडाफोन, क्रॉसवर्ड पुरस्कार संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था।
नील मुखर्जी बुकर पुरस्कार की दौड़ में रिचर्ड फ्लैनागन से हारे
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