भोपाल। 1 मई को भिंड में चाय पर चर्चा के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में पुलिस अधिकारियों ने पत्रकारों के साथ मारपीट की। कार्यक्रम में एसआई गिरीश शर्मा और सत्यबीर सिंह ने संवाद की जगह गालियां दीं और कई पत्रकारों को लात-घूंसे मारे। पीड़ितों में अमरकांत सिंह, शशिकांत गोयल, प्रीतम सिंह समेत कई पत्रकार शामिल हैं।

घटना के बाद प्रदेशभर के पत्रकारों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यह केवल शारीरिक हमला नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा वार है। पत्रकारों ने आरोप लगाया कि सरकार और पुलिस प्रशासन पत्रकारों को डराने की कोशिश कर रहे हैं।

3 मई को पत्रकारिता दिवस पर भोपाल में रॉयल प्रेस क्लब ने पत्रकार वार्ता आयोजित की, जिसमें पीड़ित पत्रकारों ने अपनी व्यथा सुनाई। क्लब अध्यक्ष पंकज भदौरिया ने मुख्यमंत्री, डीजीपी और अन्य जिम्मेदारों को पत्र लिखकर उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।

अब तक न तो पुलिस अधीक्षक पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही मारपीट करने वाले अधिकारियों को निलंबित किया गया है। पत्रकारों ने नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार से मांग की है कि वे इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएं।

भिंड की घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या पत्रकार होना अब जोखिम बन चुका है? अगर सत्ता और प्रशासन पत्रकारों की गरिमा की रक्षा नहीं कर सकते, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर होती जाएगी।