
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में शह-मात का खेल शुरू हो गया है. आरजेडी ने तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है, लेकिन महागठबंधन के प्रमुख घटक दल रजामंद नहीं हैं. कांग्रेस पहले ही तेजस्वी के नाम पर रजामंद नहीं है और अब माले ने भी अपने तेवर दिखा दिए हैं. सीपीआई माले ने आरजेडी से अलग स्टैंड लेटे हुए साफ कर दिया है कि चुनाव के बाद महागठबंधन में जो भी दल बड़ा होगा, उस पार्टी का ही सीएम होगा. ऐसी ही बात कांग्रेस भी कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि तेजस्वी यादव सीएम पद के चेहरे की हां और ना के बीच झूलते हुए नजर आ रहे हैं?
सीपीआई माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि महागठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी का नेता ही मुख्यमंत्री बनेगा. उन्होंने कहा कि सभी दल मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. इस तरह वाम दल भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि तेजस्वी यादव ही गठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे. इससे पहले कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. हालांकि, महागठबंधन दल में शामिल वीआईपी प्रमुख ने तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा मानने के लिए तैयार हैं, लेकिन साथ ही मुकेश सहनी खुद को डिप्टी सीएम बनाने की बात कर रहे हैं.
तेजस्वी के सीएम चेहरे पर सस्पेंस
बिहार में महागठबंधन का हिस्सा आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई माले, वामपंथी दल और मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी शामिल हैं. मुकेश सहनी महागठबंधन के सीएम पद का चेहरा तेजस्वी यादव को बनाने के पक्ष में है. आरजेडी पहले ही तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर चुकी है, लेकिन कांग्रेस और सीपीआई माले ने साफ कह दिया है कि सीएम का फैसला चुनाव के बाद होगा. महागठबंधन के घटक दलों की हां और ना के बीच तेजस्वी यादव जूझ रहे हैं. दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि सीएम चेहरे का फैसला चुनाव के बाद होगा. इस तरह महागठबंधन के अंदर ही तेजस्वी यादव को सभी दल स्वीकार नहीं कर रहे.
कांग्रेस-आरजेडी नेताओं की दिल्ली से लेकर पटना तक बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन तेजस्वी के नाम पर मुहर नहीं लगी. तेजस्वी यादव ने खुद को मुख्यमंत्री फेस पहले ही मान लिया है. लालू यादव भी खुलकर तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाना अपना लक्ष्य बता चुके हैं. इसके बाद भी कांग्रेस और सीपीआई माले तेजस्वी यादव के नाम पर राजी नहीं है. कांग्रेस और माले महागठबंधन के प्रमुख घटक दल हैं. ये दोनों ही दल तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है तो आरजेडी के लिए आसान नहीं है.
कांग्रेस और माले क्यों नहीं तैयार?
सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाए रखने की स्ट्रैटेजी के साथ कांग्रेस और माले बिहार चुनाव लड़ना चाहती है, जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने किसी को पीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था. इस फॉर्मूले पर बिहार चुनाव में उतरने की कवायद है. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव सीएम का चेहरा होंगे, तो तेजस्वी भी अपने नाम का ऐलान कर चुके हैं. इसके बाद भी कांग्रेस और माले तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती.
कांग्रेस का तर्क है कि तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर महागठबंधन चुनावी मैदान में उतरी, तो उससे सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है. तेजस्वी के नाम पर यादव को छोड़कर, दलित अन्य पिछड़ी जातियां और सवर्ण समाज का वोट नहीं मिल पाएगा. ये बात राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने सीधे तौर पर दिल्ली बैठक में तेजस्वी यादव को बता दी. हां, ये जरूर आश्वासन दिया कि अगर बिहार में सरकार बनाने का मौका हाथ आता है, तो तेजस्वी को सीएम बनाया जा सकता, लेकिन चुनाव में उनके नाम की घोषणा कर लड़ना जोखिम भरा कदम हो सकता है.
कांग्रेस के सुर में सुर मिलाती हुई सीपीआई माले भी नजर आ रही है. सीपीआई माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि महागठबंधन किसी भी नेता को सीएम का चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद जो भी पार्टी सबसे बड़ी होगी, उसका सीएम होगा. कांग्रेस की तरह से माले ही इस बात को समझ रही है कि तेजस्वी के नाम को आगे बढ़ाने पर दलित और अतिपिछड़े वर्ग का वोट छिटक सकता है. इसकी वजह बिहार में यादवों का दबंग होना है. इस तरह से माले सियासी संदेश देने में जुट गई है.
क्या है इंडिया गठबंधन का फॉर्मूला?
महागठबंधन अगर तेजस्वी यादव को आगे कर चुनावी मैदान में उतरी है, तो सवर्ण जाति के वोटों के छिटकने का खतरा कांग्रेस को लग रहा तो सीपीआई माले को है. इसीलिए कांग्रेस बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव वाले फार्मूले पर लड़ने की तैयारी में है. इंडिया गठबंधन ने 2024 में पीएम पद का चेहरा घोषित करके चुनाव नहीं लड़ा था. इंडिया गठबंधन ने एक ज्वाइंट कमेटी जरूर बनाई थी, उसी तर्ज पर बिहार में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई जा रही है.
कांग्रेस और माले की की रणनीति है कि बिना सीएम चेहरे के उतरने से किसी समाज के वोट छिटकने का खतरा नहीं होगा. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस तेजस्वी को सीएम चेहरे की बात नहीं कर रही, ऐसे में कांग्रेस ने रणनीति बनाई है कि चुनाव के बाद जो पार्टी सबसे बड़ी बनकर उभरेगी, वही पार्टी नेता तय करेगी. जिस तरह लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है. उसी तरह से बिहार में महागठबंधन की सत्ता में वापसी होती है और आरजेडी अगर सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो तेजस्वी यादव को सीएम बनाया जा सकता है.
कांग्रेस और माले के फॉर्मूले पर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी रजामंद नहीं है, लेकिन तेजस्वी ने जिस तरह से कहा कि महागठबंधन में कन्फ्यूजन नहीं है. इससे जाहिर होता है कि आरजेडी वेट एंड वॉच के मूड में है और कांग्रेस और माले के फार्मूले पर विचार-विमर्श कर रही है. ऐसे में देखना है कि महागठबंधन सीएम के कन्फ्यूजन का कैसे सॉल्यूशन तलाशती है?