
इजराइल और फिलीस्तीन के बीच 11 दिन चली जंग फिलहाल थम चुकी है। अब न हमास (इजराइल और पश्चिमी देश इसे आतंकी संगठन मानते हैं) रॉकेट दाग रहा और न इजराइली एयरफोर्स बम बरसा रही है। हां, तबाही के निशान अब भी मौजूद हैं। और इन्हें वक्त लगेगा, अपना वजूद खोने में। जंग के दौर में अच्छी कहानियां कहां मिलती हैं? क्योंकि, इसकी तो बुनियाद ही नफरत होती है।
बहरहाल, इजराइल- हमास की जंग की एक कहानी इन दिनों लोगों को इंसानियत का सबक सिखा रही है। ये कहानी है उस इजराइली की, जिसे फिलीस्तीनियों ने संगसार कर दिया। यानी पत्थरों से मार डाला। आज उसी इजराइली की किडनी ने एक अरब महिला को नई जिंदगी बख्श दी है।
वो जो संगसार कर दिया गया...
कहानी है 58 साल की रान्दा अवीस और 56 साल के यीगल होशुआ की। पूर्वी यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद। यहां 13 अप्रैल को इजराइली पुलिस की कार्रवाई इस जंग की तात्कालिक वजह बनी। करीब 27 साल बाद ऐसा हुआ कि फिलीस्तीन और इजराइल की जंग के दौरान इजराइल के कुछ शहरों में अरब और यहूदियों के बीच भी दंगे भड़क गए। इजराइल सरकार ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
खैर, दंगों की आग इजराइली शहर लॉड तक भी पहुंची। 56 साल के यीगल होशुआ को एक जगह अरब मूल के लोगों ने घेर लिया। उन पर बेइंतहां पत्थर बरसाए गए। सात दिन जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे। फिर मौत जीत गई और जिंदगी हार गई। यीगल ने रविवार को दम तोड़ दिया। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और आर्मी चीफ ने इस घटना को वहशियाना बताया।
और वो जिसे मौत अपनी आगोश में लेना चाहती थी....
रान्दा अवीस। पुराने यरूशलम में रहती हैं। किडनियां खराब हो चुकी हैं। रेगुलर डायलिसिस पर जिंदा हैं। 9 साल इसी उम्मीद और इंतजार में गुजरे कि कोई मसीहा आएगा, उन्हें किडनी डोनेट करेगा और रान्दा फिर जिंदगी का नया सफर शुरू कर सकेंगी।
लेकिन, उस नीली छतरी वाले ईश्वर का खेल भी निराला है। रान्दा को किडनी मिली और सोमवार को उनकी सर्जरी भी हो गई। लेकिन, तब तक उन्हें यह पता नहीं था कि जिस फरिश्ते की बदौलत उन्हें नई जिंदगी मिली है, वो कोई और नहीं बल्कि वो शख्स है जिससे अरब या फिलीस्तीन के लोग शायद प्यार नहीं कर सकते।
यीगल को अंतिम विदाई देते परिजन। रविवार को प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी यीगल के परिवार से मिलने गए थे।
यीगल को अंतिम विदाई देते परिजन। रविवार को प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी यीगल के परिवार से मिलने गए थे।
तो ये हुआ कैसे?
होशुआ ने कई साल पहले ऑर्गन डोनर के तौर पर अपना नाम दर्ज कराया था। जिस लॉड शहर में वो रहते थे, उससे चंद किलोमीटर के फासले पर यरुशलम है। यहीं के हादस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में रान्दा का इलाज चल रहा था। दोनों शहरों के बीच फासला भले ही चंद किलोमीटर का हो, लेकिन दिलों की दूरियां बहुत ज्यादा हैं। अगर ये नहीं होतीं, तो सोचिए क्या जंग होती?
यीगल की मौत हुई। नियम के मुताबिक, उनका रिकॉर्ड चेक किया गया और जैसे ही उनके ऑर्गन डोनर होने की बात सामने आई तो प्रॉसेस तेज की गई। यीगल तो इस दुनिया से चले गए, लेकिन जाते-जाते रान्दा को फिर मुस्कराने की वजह दे गए।
वो हर वक्त याद आएंगे
रान्दा की सर्जरी कामयाब रही। वो अब तेजी से रिकवर कर रही हैं। उनकी बेटी ने ‘टाइम्स ऑफ इजराइल’ से कहा- मां या हमें पता ही नहीं था कि डोनर कौन है? हम ने सोचा वो जो भी होगा, फरिश्ता होगा। हम होशुआ के परिवार का शुक्रिया अदा करते हैं। वो हमेशा हमारी यादों में रहेंगे।