एशिया के क्षितिज पर एक बड़ा संकट मंडरा रहा है. हाल ही में सामने आई अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों और रणनीतिक विश्लेषणों के अनुसार, चीन अगले 6 महीनों में ताइवान पर हमला कर सकता है. यह दावा अमेरिकी रक्षा मामलों के जानकारों और खुफिया सूत्रों पर आधारित है. अगर यह सच होता है, तो यह न केवल ताइवान के लिए बल्कि पूरे एशिया और विश्व के लिए एक गंभीर सैन्य और राजनीतिक संकट बन सकता है.

बीते कुछ सालों से चीन की ताइवान को लेकर रणनीति साफ रही है “एक चीन नीति” के तहत ताइवान को चीन का हिस्सा मानना और किसी भी कीमत पर उसे मिलाना. ताइवान भले ही खुद को एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश मानता हो, लेकिन चीन इसे अपना “विचलित प्रांत” कहता है. अब, खुफिया सूत्रों के अनुसार, बीजिंग में यह बहस तेज हो गई है कि अगर ताइवान को अब नहीं मिलाया गया, तो फिर कब?

चीन की तैयारी और मंशा
चीन ने हाल ही में ताइवान के आसपास कई बड़े सैन्य अभ्यास किए हैं. समुद्र और वायुसीमा में आक्रामक गतिविधियां, ताइवान के रक्षा क्षेत्र में घुसपैठ और साइबर हमलों की खबरें लगातार आती रही हैं. इन गतिविधियों से यह संकेत मिलता है कि चीन अब केवल रणनीतिक दबाव बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वास्तव में सैन्य कार्रवाई की ओर बढ़ सकता है.

ताइवान को चीन ने फिर डराया
आज सुबह 6 बजे (UTC+8) तक ताइवान के आसपास 16 पीएलए (PLA) विमान, 5 पीएलएएन (PLAN) नौसैनिक पोत और 1 सरकारी जहाज की गतिविधि दर्ज की गई. इनमें से 16 में से 15 विमानों ने मध्य रेखा पार की और ताइवान के उत्तर, दक्षिण-पश्चिम और पूर्वी वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (ADIZ) में दाखिल हुआ. हलकों ताइवान की डिफेंस मिनिस्ट्री ने स्थिति पर निगरानी रखी और जरूरी प्रतिक्रिया दी.

ताइवान के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय की एक पोस्ट में चीनी सैन्य गतिविधियों की जानकारी कल भी दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान के आसपास 4 पीएलए (PLA) सैन्य विमान और 8 पीएलएएन (PLAN) नौसैनिक जहाज देखे गए, जिनमें से 2 विमान ताइवान की उत्तरी वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (ADIZ) में मीडियन लाइन पार कर दाखिल हुए. यह गतिविधियां हाल ही में हुए चीनी सैन्य अभ्यास “Strait Thunder-2025A” के बीच बढ़ते तनाव को बढ़ा रही हैं.

जो एक अनौपचारिक सीमा मानी जाती है, अब पीएलए विमानों उसको लगातार पार कर रहे हैं. जेम्सटाउन फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में ऐसी घटनाओं में तेज वृद्धि हुई है. साल 2025 के अप्रैल महीने में अब तक ज्यादातर दिनों में 50% से अधिक विमान इस सीमा को पार करते पाए गए हैं. इससे ताइवान की रक्षा क्षमताओं पर भारी दबाव पड़ रहा है.

ये गतिविधियां अमेरिका खुफिया रिपोर्ट्स से मेल खाती हैं, जिनमें कहा गया है कि चीन अगले 6 महीनों में ताइवान पर हमला करने की कोशिश कर सकता है. विश्लेषणों के अनुसार, पीएलए की ये हरकत संभावित संघर्ष की पूर्वाभ्यास मानी जा रही हैं, जो क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा रही हैं.

संभावित रणनीतियां: तीन प्रमुख विकल्प
अमेरिका की रिपोर्ट में तीन प्रमुख रणनीतिक विकल्पों की बात की गई है, जिन्हें चीन ताइवान पर नियंत्रण पाने के लिए अपना सकता है.

1. नाकाबंदी (Blockade)
यह चीन की सबसे कम आक्रामक लेकिन प्रभावशाली रणनीति हो सकती है. चीन की नौसेना ताइवान को चारों ओर से घेर सकती है, जिससे उसके समुद्री रास्ते पूरी तरह बंद हो जाएंगे. ताइवान अपनी 90% खाद्य आपूर्ति और 100% प्राकृतिक गैस समुद्र मार्ग से मंगाता है. अगर यह आपूर्ति ठप हो जाए, तो देश में मानवीय संकट पैदा हो सकता है और सरकार को चीन की शर्तों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

2. सीधा सैन्य हमला
इस विकल्प में चीन मिसाइल और साइबर हमलों से ताइवान की सुरक्षा को पंगु बना देगा. एयर डिफेंस सिस्टम, रडार बेस, पॉवर ग्रिड और इंटरनेट सिस्टम को क्रैश करके ताइवान को अंधेरे में डुबो दिया जाएगा. इसके बाद चीन के लगभग 1,00,000 सैनिक तटों से दाखिल हो सकते हैं और राजधानी ताइपे पर कब्जा करने की कोशिश करेंगे. यह सबसे खतरनाक और विनाशकारी रणनीति होगी, जिसमें भारी जनहानि की आशंका है.

3. मल्टी फ्रंट अटैक
तीसरा विकल्प न केवल ताइवान पर कब्जा करने तक सीमित होगा, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को भी एक साथ निशाना बनाया जाएगा. चीन अपनी मिसाइलों से जापान, गुआम और फिलीपींस में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले कर सकता है. इसका मकसद अमेरिका की सहायता पहुंचाने की क्षमता को खत्म करना होगा ताकि वह ताइवान की मदद न कर सके.

अमेरिका और पश्चिमी देशों का फ्यूचर एक्शन
अमेरिका कागजों में लंबे समय से “वन चाइना पॉलिसी” को स्वीकार करता है, लेकिन ताइवान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भी रहा है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो अमेरिका सैन्य प्रतिक्रिया देगा. हाल ही में अमेरिका ने ताइवान को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति और सैन्य प्रशिक्षण भी तेज किया है.

इसके अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस जैसे अमेरिकी सहयोगी देश भी इस संकट को गंभीरता से ले रहे हैं. जापान की सुरक्षा नीति में बदलाव और अमेरिका-जापान संयुक्त सैन्य अभ्यास इसका साफ संकेत हैं.

चीन के लिए यह समय रणनीतिक दृष्टि से सही माना जा रहा है. अमेरिका आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता, चुनावी राजनीति और यूक्रेन-गाजा जैसे कई मोर्चों पर व्यस्त है. चीन मानता है कि अगर अब ताइवान पर हमला किया जाए, तो अमेरिका शायद प्रभावी जवाब न दे पाए. इसके अलावा, शी जिनपिंग की सत्ता को भी घरेलू समर्थन की जरूरत है और ‘राष्ट्रवाद’ को भुनाने के लिए ताइवान पर आक्रमण एक बड़ा दांव हो सकता है.

क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो सकती है?
अगर चीन और अमेरिका सीधे टकराते हैं, तो यह टकराव सिर्फ ताइवान तक सीमित नहीं रहेगा. एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अन्य देश जैसे जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया भी खिंच सकते हैं. इसके अलावा यूरोप और नाटो भी इसमें कूटनीतिक या सैन्य रूप से शामिल हो सकते हैं. इससे व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है. खासकर सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री, जिसमें ताइवान सबसे आगे है, पूरी दुनिया की तकनीकी अर्थव्यवस्था को झटका दे सकती है.