वक्फ संसोधन बिल संसद से पास होने के बाद कानूनी रूप भी अख्तियार कर लिया है. संसद में वक्फ बिल पर मोदी सरकार के साथ जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल मजबूती से खड़ी थी. इसके चलते मुस्लिम समुदाय में RLD के रवैए से नाराज है. प्रदेश संगठन से जुड़े हुए कुछ नेताओं ने RLD से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में पश्चिमी यूपी की सियासत ही नहीं बल्कि जयंत चौधरी की जाट और मुस्लिम समीकरण बनाने की कोशिशों पर झटका लग सकता है.
वक्फ संशोधन बिल के समर्थन करने पर नाराजगी जताते हुए हापुड़ जिले के RLD महासचिव मोहम्मद जकी और प्रदेश महासचिव शाहजेब रिजवी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. RLD रुहेलखंड क्षेत्र के उपाध्यक्ष शमशाद अंसारी ने अपने साथियों के साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. शमशाद की पत्नी बिजनौर नगर पालिका की चेयरमैन रह चुकी हैं. पार्टी को अलविदा कहने वाले मुस्लिम नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए वक्फ संशोधन विधेयक का रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी द्वारा समर्थन दिए जाने से मुस्लिम समाज आहत है और स्वयं को ठगा महसूस कर रहा है.
RLD के जाट-मुस्लिम समीकरण क्या होगा
यूपी में सपा, BSP और RLD सिर्फ अपने-अपने जातीय आधार वाले वोटों के साथ प्लस मुस्लिम वोटों के इर्द-गिर्द पूरी राजनीति करती रही हैं. सपा यादव के साथ और मुस्लिम गठजोड़, BSP दलित के साथ मुस्लिम गठजोड़ और RLD जाट के साथ और मुस्लिम समीकरण के सहारे सियासत करती रही है. RLD पूरी तरह पश्चिमी यूपी आधारित पार्टी है, उसके सियासी आधार भी जाट और मुस्लिम वोटों पर टिका हुआ है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी लगभग 32% है और जाट समुदाय काफी प्रभावशाली है. RLD की सियासत में सिर्फ जाट वोटर ही नहीं हैं बल्कि मुस्लिम और दलित वोट भी हैं.
2022 विधानसभा चुनाव में RLD ने सपा के साथ गठबंधन कर 8 सीटें जीती थीं, जिसमें मुस्लिम वोटों की अहम भूमिका थी. RLD के लिए पश्चिमी यूपी के 32% मुस्लिम समुदाय से किनारा कर चलना आसान नहीं है. पश्चिम यूपी में जाट 20% के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40% के बीच हैं. पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. RLD का कोर वोटबैंक जाट माना जाता है. अकेले जाट वोटों के सहारे जयंत चौधरी कुछ खास नहीं कर सकते हैं, लेकिन मुस्लिम या फिर कोई दूसरा बड़ा वोटबैंक जुड़ता है तभी जाट वोटर निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं.
RLD का बिगड़ता सियासी समीकरण
2024 में BJP के साथ गठबंधन और अब वक्फ बिल के समर्थन ने RLD का जाट-मुस्लिम समीकरण को खतरे में डाल दिया है. BJP के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के चलते मुस्लिम वोटों के छिटकने का संकट मंडराने लगा है. वक्फ कानून जिसे केंद्र की एनडीए सरकार ने संसद में पारित किया, उसके बाद से ही मुस्लिम समुदाय के बीच से RLD की नाराजगी की खबरे आने लगी. RLD, जो एनडीए का हिस्सा है, ने इस बिल का समर्थन किया. जयंत चौधरी के इस फैसले से पार्टी के मुस्लिम नेताओं में नाराजगी फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप कई मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी.
मुस्लिम नेताओं के छिटकने से RLD का परंपरागत वोट बैंक कमजोर हो सकता है. पश्चिमी यूपी की कई विधानसभा और लोकसभा सीटों, जैसे सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, और बागपत, पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन इस्तीफों से न केवल पार्टी की आंतरिक एकता प्रभावित होगी, बल्कि इसका असर आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है. पश्चिमी यूपी की इन्हीं इलाकों में वक्फ की ज्यादातर संपत्तियां हैं. वक्फ के नए कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित भी इसी इलाके के मुस्लिम समुदाय होंगे, जिसके चलते ही RLD के लिए मुस्लिम वोटों को साधे रखना आसान नहीं होगा.
मुस्लिमों की नाराजगी कहीं महंगी न पड़ जाए
RLD की कमान संभालने के बाद जयंत चौधरी ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा किया था, जो जाट-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे. वक्फ बिल का समर्थन और मुस्लिम नेताओं का पार्टी छोड़ना इस छवि को धूमिल कर सकता है. BJP के साथ गठबंधन करने के चलते पहले ही RLD के कई बड़े मुसलमान नेता जयंत चौधरी का साथ छोड़ चुके हैं. शाहिद सिद्दीकी के बाद पिछले दिनों अमीर आलम भी RLD को अलविदा कह दिया था. इसके बाद वक्फ बिल पर RLD के समर्थन में उतरने से मुस्लिम समुदाय खुश नहीं है. यही नहीं RLD के तमाम मुस्लिम नेता भी बेचैन है और उन्हें अपनी सियासी जमीन खिसकती दिख रही है.
RLD के एक मुस्लिम विधायक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि BJP के साथ गठबंधन करने के बाद जयंत चौधरी की सेकुलर पॉलिटिक्स पर सवाल खड़े होने लगे हैं. मुसलमानों में बहुत ज्यादा नाराजगी है, जिसके चलते उनको भी अपने क्षेत्र में जवाब देते नहीं बन रहा है. उनका कहना था कि 2022 में हम चुनाव इसीलिए भी जीत गए थे, क्योंकि सपा से गठबंधन था, इसके चलते मुस्लिमों ने एकमुश्त होकर वोट दिया है, लेकिन BJP के साथ रहते हुए मुस्लिमों का समर्थन लेना पहले ही मुश्किल हो रहा था और अब वक्फ बिल पर समर्थन करके सारी सियासत खत्म होती दिख रही है.
मुस्लिम समर्थन कम होने की स्थिति में RLD को जाट वोटों पर अधिक निर्भर होना पड़ेगा. RLD में वक्फ कानून के विरोध में मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे जयंत चौधरी के लिए एक बड़ी चुनौती हैं. यह घटनाक्रम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में RLD की राजनीतिक जमीन को कमजोर हो रही. जयंत चौधरी की सेक्युलर छवि पर सवाल उठ रहे हैं. पहले उन्होंने किसान आंदोलन के जरिए जाट-मुस्लिम एकता को मजबूत किया था, लेकिन BJP के साथ गठबंधन और वक्फ बिल का समर्थन ने सियासी टेंशन RLD की बढ़ा दी है. ऐसे में जयंत चौधरी को मुस्लिम वोटों को साधे रखना मुश्किल हो जाएगा?