बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत कहती हैं कि 'ये जो सोशल मीडिया पर गंगा में लाशें तैर रही हैं, वो नाइजीरिया की हैं। ये सब यहां के लोग ही हमारी पीठ में छूरा घोंप रहे हैं।' सरकार और सिस्टम से जुड़े लोग कहते हैं कि 'ये सब झूठ है, नकारात्मकता फैलाने की कोशिश है।"

कंगना जी, सरकार और सिस्टम... देखिए ये सच है... ये नाइजीरिया नहीं, अपनी मां गंगा की गोंद से लाइव तस्वीरे हैं... 

उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे से शवों के मिलने का सिलसिला जारी है। प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर धाम के पास बड़ी संख्या में शव गंगा किनारे दबे हुए दिखाई दे रहे हैं। श्रृंगवेरपुर में कुछ इस तरह शवों को दफनाया गया है कि एक छोर से दूसरे छोर तक बस शव ही नजर आ रहे हैं। दूर तक तो नजर भी नहीं थम रही है। यहां करीब 1 किलोमीटर की दूरी में शव दफनाए गए हैं। 2 शवों के बीच में 1 मीटर का भी फासला नहीं है।

घाट पर मौजूद पूजा-पाठ कराने वाले पंडितों का कहना है कि पहले यहां रोज 8 से 10 शव ही आते थे, लेकिन पिछले एक महीने से रोज 60 से 70 शव आ रहे हैं। कई दिन तो 100 से भी ज्यादा लाशें आ रही हैं। एक महीने में 4 हजार से ज्यादा शव आ चुके हैं।

वहीं, शासन की रोक के बाद भी शैव सम्प्रदाय के अनुयायी शव दफना रहे हैं। सोमवार को एसपी गंगापार धवल जायसवाल भी घाट का निरीक्षण करने पहुंचे, उन्होंने बताया कि घाटों पर पीएसी और जल पुलिस तैनात कर दी गई है। गश्त भी हो रही है। शवों को दफनाए जाने से रोकने के लिए लोगों की काउंसिलिंग हो रही है।

मान्यता है कि शैव संप्रदाय के लोग गंगा किनारे शव दफनाते रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं है। यह बहुत पुरानी परंपरा है। इसे रोका नहीं जा सकता। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी।
 

दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की कमी हो गई

श्रृंगवेरपुर धाम में प्रयागराज के अलावा प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और फैजाबाद जिलों के शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। कोरोना की सेकंड वेब के बाद से श्रृंगवेरपुर घाट पर हर दिन बड़ी संख्या में शव आ रहे हैं। जिससे श्रृंगवेरपुर घाट पर दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की भारी कमी हो गई और लकड़ी ठेकेदारों ने भी लोगों से दाह संस्कार के लिए ज्यादा पैसे वसूलने शुरू कर दिए। जिसके बाद लोगों ने मजबूरी में दाह संस्कार के बजाय शवों को दफनाना शुरू कर दिया।
घाट पर अंतिम संस्कार कराने वाले पुरोहित प्रवीण त्रिपाठी भी गंगा नदी की रेत में इस तरह से शवों को दफनाये जाने को गलत बता रहे हैं। श्मशान घाट पर लकड़ी की कमी और प्रशासन की ओर कोई इंतजाम न किए जाने से मजबूरी में लोग शवों को रेत में दफनाकर लौट जा रहे हैं।