बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार का मिशन ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ फेल हो रहा है। पांच साल पहले मेरठ जिले के 221 स्कूलों में साढ़े पांच करोड़ की लागत से प्रोजेक्टर लगवाए गए थे, लेकिन बिजली की व्यवस्था नहीं होने के कारण ये कबाड़ हो चुके हैं। एक दिन भी बच्चों ने प्रोजेक्टर पर पढ़ाई नहीं की। अब सरकार ने जिले के 141 सरकारी स्कूलों के लिए ढाई करोड़ की एलईडी दी हैं। हालांकि, छात्रों को एलईडी की सुविधा अभी तक मुहैया नहीं कराई गई है।
बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में स्मार्ट क्लास या फिर अन्य सुविधाओं को लेकर सरकार भले ही बजट खर्च कर रही हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर अनदेखी से योजना अधर में लटकी है। सरकार ने जिले के 141 उच्च प्राथमिक, कंपोजिट विद्यालय, मेरठ शहर और खरखौदा कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में स्मार्ट क्लास बनाने का निर्णय लिया। स्मार्ट क्लास में एलईडी लगेंगी। जिन पर बच्चे पढ़ते नजर आएंगे। इस योजना पर सरकारी खजाने से लगभग दो करोड़ 50 लाख रुपये खर्च होने वाले हैं। एलईडी पर चलचित्र के माध्यम से बच्चों को किसी भी विषय को अच्छी तरह समझने का अवसर मिलेगा। इस परियोजना के माध्यम से सरकारी स्कूलों के बच्चों को एक कॉन्वेंट स्कूल जैसी सुविधा और पढ़ाई का एहसास होगा।
शिक्षकों को एलईडी चलाने का नहीं मिला प्रशिक्षण
विभाग ने शिक्षकों को प्रोजेक्टर चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया, ठीक इसी प्रकार एलईडी चलाने का भी प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, खंड शिक्षा अधिकारियों को एलईडी पर पढ़ाने का प्रशिक्षण दे दिया गया है। बताया जा रहा है कि भविष्य में खंड शिक्षा अधिकारी ही स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देंगे।
उधर, बजट के अभाव से प्रोजेक्टर की तरह एलईडी का नेटवर्क भी खराब हो सकता है। खासकर मोबाइल सिम, इंटरनेट बिल खर्च एक समस्या बना है। इसके कारण सरकार की कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलने से पहले ही विकलांग हो गई। एलईडी भी इंटरनेट के माध्यम से ही संचालित होंगी। शिक्षक इसपर आने वाले खर्च को लेकर परेशान हैं। उधर, विभाग का कहना है कि इंटरनेट पर आने वाला खर्च कंपोजिट ग्रांट से किया जाएगा।
प्रोजेक्टर लगाकर भी था स्मार्ट क्लास रूम का दावा
सरकार ने पीएम जन कल्याण योजना के तहत 2019 में जिले के 221 उन स्कूलों में जहां अल्पसंख्यक बच्चों की संख्या अधिक थी। उनमें स्मार्ट क्लास रूम बनाने और प्रोजेक्टर के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए पांच करोड़ 61 लाख 34 हजार का बजट खर्च किया था। इसकी पूरी जिम्मेदारी अल्पसंख्यक विभाग को सौंपी गई। चयनित कंपनी ने अधिकतर स्कूलों में प्रोजेक्टर भिजवाए भी थे। कुछ स्कूलों में प्रोजेक्टर पर बच्चे पढ़ते भी दिखे थे। बिजली कनेक्शन और इंटरनेट के अभाव में लगभग सभी प्रोजेक्टर बंद हो गए और कबाड़ बन गए। इनके रखरखाव को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग ने भी कोई कदम नहीं उठाया।
अधूरे संसाधनों से कैसे सफल होंगी योजनाएं
प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष राकेश तोमर का कहना है कि पहले स्कूलों में प्रोजेक्ट लगाए और अब एलईडी लगाने की तैयारी है। जब इनके लिए नेटवर्क की भी व्यवस्था नहीं है तो ये कैसे चलेंगे। प्रोजेक्टर की तरह एलईडी भी कबाड़ हो जाएंगी। शिक्षक चाहते हैं कि बच्चों को इसका लाभ पहुंचे, लेकिन क्या करें। व्यवस्था तो हो।
चयनित सभी स्कूलों में एलईडी पहुंच रही हैं, जो शीघ्र ही लगनी शुरू हो जाएंगी। पब्लिक स्कूल की तरह बेसिक के स्कूलों में बच्चे एलईडी पर पढ़ाई करेंगे। पूर्व में लगाए गए प्रोजेक्टर की स्थिति की भी रिपोर्ट खंड शिक्षा अधिकारियों से ली जाएगी। जो भी कमियां हैं उनको दूर किया जाएगा। - आशा चौधरी, बीएसए