भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने खतरनाक रूप ले लिया है। ऐसे में बच्चों में भी इन्फेक्शन के केस सामने आए हैं। पहली लहर के मुकाबले इनकी संख्या ज्यादा है। इस पर दैनिक भास्कर ने एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी से कोरोनावायरस पर PhD करने वाली चेन्नई की कोरोनावायरोलॉजिस्ट डॉ. पवित्रा वेंकटगोपालन से बातचीत की। उनसे समझते हैं कि बच्चों में संक्रमण के मामलों को रोकने के लिए क्या कदम उठाना जरूरी होगा और उन्हें वैक्सीन कब मिलेगी...

18 वर्ष से कम उम्र वालों को टीका नहीं लगेगा, लेकिन वे संक्रमित हो रहे हैं, बचाव कैसे होगा?
भारत में टीकाकरण के तीसरे फेज में 18-45 वर्ष के वयस्कों को भी शामिल किया जा रहा है। भले ही बच्चों में इन्फेक्शन के केस बढ़ रहे हैं, पर हम उन्हें फिलहाल वैक्सीन नहीं दे सकते। इसकी बड़ी वजह यह है कि हमने बच्चों में वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की जांच नहीं की है। हमारे पास और भी तरीके हैं। सबसे अच्छा तरीका होगा कि उन्हें हम इन्फेक्शन से दूर रखें। यह दो तरीके से हो सकता है। पहला, हम बच्चों के साथ रह रहे सभी वयस्कों को वैक्सीनेट कराएं। दूसरा, बच्चों को कोविड-19 के प्रोटोकॉल सिखाएं।

अमेरिका में 16 साल से ऊपर वालों के लिए अभी वैक्सीनेशन शुरू हुआ है। यह और नीचे की उम्र तक कब शुरू होने की उम्मीद है?
फिलहाल तो नहीं। इस समय जो वैक्सीन भारत में इस्तेमाल हो रही हैं, उनका बच्चों पर कोई ट्रायल नहीं हुआ है। दुनियाभर में कुछ क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं, जिसमें बच्चों पर कोविड-19 वैक्सीन की इफेक्टिवनेस और सेफ्टी जांची जा रही है। जब तक ट्रायल्स पूरे नहीं हो जाते, यह वैक्सीन बच्चों के लिए पूरी तरह सुरक्षित और इफेक्टिव साबित नहीं होती, तब तक हमें इंतजार करना होगा। यह बार-बार दोहराना जरूरी है कि कोरोना वायरस का इन्फेक्शन सभी एज ग्रुप में हो रहा है। पर 50 वर्ष से ज्यादा एज ग्रुप के लोगों के लिए खतरा कई गुना बढ़ जाता है। बच्चों में इन्फेक्शन बिना किसी लक्षण वाले या माइल्ड इन्फेक्शन के तौर पर ही दिखा है।

छोटे बच्चों की सेफ्टी का अलग प्रोटोकॉल है?
नहीं। कोरोना वायरस सभी आयु समूहों को प्रभावित करता है और सभी के लिए यह जरूरी हो जाता है कि इससे बचने के लिए जो भी हो सकता है, वह जरूर करें। WHO की सिफारिश कहती है कि पैरेंट्स को कोरोना से जुड़े व्यवहार का सख्ती से पालन करना होगा। बच्चों के लिए भी जरूरी है कि वे इन उपायों को अपनी दिनचर्या और आदत का हिस्सा बनाएं। पैरेंट्स को अपने बच्चों से बात करने और उनके सवालों का जवाब देने और उनके डर को कम करना चाहिए। यह भी तय करें कि उनके बच्चे ऐसे बच्चों के साथ खेलें जिनके परिवार में सभी वयस्कों ने वैक्सीन लगवाई हो और जो हमेशा कोरोना से बचने के उपायों का सख्ती से पालन करते हैं। और सबसे जरूरी बात है, फिजिकल डिस्टेंसिंग। परिवार के बाहर सुनिश्चित करें कि बच्चे और बड़े भी दूसरों से दूरी बनाए रखें।

क्या 18 से कम उम्र के लोगों में इम्युनिटी ज़्यादा होती है और क्या इसलिए वह संक्रमण झेल पाते हैं?
काफी हद तक हां। पर आम तौर पर सभी आयु समूहों में जो लोग सही खाना खाते हैं और सक्रिय जीवनशैली का पालन करते हैं, उनमें इम्युनिटी मजबूत होती है। कोविड-19 सभी आयु समूहों को प्रभावित जरूर कर रहा है, पर जिन लोगों की लाइफस्टाइल हेल्दी है, उन्हें कोरोना ने ज्यादा परेशान नहीं किया। बच्चों की एक्टिविटी का स्तर अन्य के मुकाबले अधिक रहता है, जिससे उन्हें इन्फेक्शन ज्यादा परेशान नहीं कर रहा।

सेकंड वेव में क्या कोरोना कम उम्र के लोगों में भी ज़्यादा फैलेगा?
नहीं। इस बात को लेकर कोई डेटा नहीं है कि कोरोना वायरस के नए वेरिएंट युवाओं को ज्यादा इन्फेक्ट कर रहे हैं। इस समय तो वायरस सभी को इन्फेक्ट कर रहा है; और जिन बुजुर्गों को अन्य बीमारियां हैं, उन्हें गंभीर इन्फेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती करने की स्थिति बन रही है। कोविड-19 की पहली लहर में लोगों में ज्यादा सावधानी थी। उन्होंने कोरोना से बचने के उपायों का सख्ती से पालन किया। बच्चों तक इन्फेक्शन नहीं पहुंचे, इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए गए। पर पिछले एक साल में आइसोलेशन ने देश के लोगों को वित्तीय और भावनात्मक रूप से बहुत परेशान किया है। जनवरी में जब कोरोना वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो लोगों को लगने लगा कि इस वायरस को हराने में टीकाकरण ही काफी होगा। वे फिर से वैसा ही जीवन जीने लगे, जैसा महामारी से पहले जी रहे थे। कई लोगों ने सामाजिक दूरी और मास्क लगाने के नियमों की अनदेखी शुरू की। इसी वजह से पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बच्चों में दर्ज इन्फेक्शन के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।