भोपाल : शिक्षा मात्र शारीरिक ही नहीं बल्कि व्यक्ति का समग्र विकास करती है। शिक्षा पद्धति में भारतीय मान्यताओं और परम्पराओं का समावेश कर उत्कृष्ट समाज का निर्माण किया जा सकता है। इसके लिए देश की उपलब्धियों पर गर्व का भाव जागृत कर भारतीय ज्ञान परम्परा को समझने की आवश्यकता है। अपनी भाषा, संस्कृति, इतिहास, नायक एवं उपलब्धियों आदि पर स्वाभिमान का भाव स्वयं में जागृत करें। युगानुकुल परिवर्तन के संकल्प के साथ भारतीय परम्पराओं, मान्यताओं और लोक व्यवहार पर शोध कर विज्ञान के समन्वय से नव सृजन किया जा सकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने सोमवार को भोपाल स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भवभूति प्रेक्षागृह में "भारतीय शिक्षा-मनोविज्ञान" विषय पर आधारित छः दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर कही।
परमार ने भारतीय ज्ञान परम्परा अनुरूप मनोविज्ञान के नवसृजन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है। परमार ने विद्यार्थियों के बेहतर प्रशिक्षण के लिए देश के उत्कृष्ट संस्थानों के मध्य संसाधनों के परस्पर आदान-प्रदान करने की प्रबंध योजना बनाने की बात कही। मंत्री परमार ने "भारतीय शिक्षा-मनोविज्ञान" विषयक विचार-विमर्श पर कार्यशाला आयोजन के लिए विश्वविद्यालय परिवार को शुभकामनाएं भी दीं।
विश्वविद्यालय परिवार ने विधानसभा सदन में संस्कृत में शपथ लेकर संस्कृत भाषा के प्रति सम्मान के लिए मंत्री परमार का संस्कृत साहित्य भेंट कर सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में पुणे की प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ माधवी गोडबोले, विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, निदेशक प्रो. रमाकांत पांडेय, शोध केंद्र समन्वयक प्रो. नीलाभ तिवारी, विविध राज्यों के सहभागी शिक्षाविद् सहित प्राध्यापक एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।