पिथौरागढ़. उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है. यहां के लोग देवताओं के प्रति आस्था और उनके बनाए नियमों के अनुसार ही चलते हैं. यहां लोग जितना देवताओं को मानते हैं, उतना ही भूत-पिशाचों को भी. मसाण लगने को यहां की स्थानीय भाषा में छल लगना या परी लगना कहा जाता है. यहां कई जगहों पर भूतों से रक्षा के लिए उनके मंदिर भी बनाए गए हैं, जिन्हें पहाड़ों में मसाण बोला जाता है और हर गांव में इसके मंदिर (Masan Devta Temple) भी देखे जाते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ों पर ज्यादातर मसाण देवता के मंदिर ऐसी जगह होते हैं, जहां पर चिताएं जलती हैं या फिर कोई नदी या गधेरों पर. यहां मसाण लगने का मतलब होता है कि कोई बुरी आत्मा या पिशाच पीड़ित को लग गया है, जिसके बाद मसाण देवता की पूजा की जाती है, जिसके लिए भी अनेक प्रावधान हैं. अक्सर देखा जाता है कि मसाण देवता की पूजा के बाद पीड़ित व्यक्ति एकदम ठीक हो जाता है.

मसाण देवता का माना जाता है पहाड़ों का रक्षक
मसाण देवता के मंदिर में लोग न्याय मांगने भी आते हैं. समाज में न्याय न मिलने वाले लोग मसाण देवता के मंदिर में न्याय की गुहार लगाते हैं. पहाड़ में कई जगह मसाण देवता को रक्षक के रूप में भी पूजा जाता है. ऐसा माना गया है कि मसाण देवता जहां विराजमान होते हैं, वहां अन्य कोई बुरी शक्तियां प्रभावी नहीं होती हैं.