प्रसूता की इलाज में लापरवाही के कारण मौत उत्तराधिकारी को एक लाख रूपये एक माह में अदा करें
आयोग ने की अनुशंसा
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने दतिया जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, उनाव में प्रसव के लिए आई एक प्रसूता को समुचित इलाज न मिलने पर ग्वालियर ले जाते समय मौत हो जाने के मामले में मृतिका के पति को एक लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि एक माह में देने की अनुशंसा की है। राज्य शासन चाहे, तो इस क्षतिपूर्ति राशि की वसूली संबंधित डाॅक्टर एवं अन्य चिकित्सकीय स्टाॅफ से कर सकता है।
आयोग में प्रचलित प्रकरण क्रमांक 2307/दतिया/2020 के अनुसार मृतिका के पति श्री अनिल अहिरवार ने आयोग को आवेदन पत्र देकर बताया कि 10 फरवरी 2020 को उसकी पत्नी रीमा अहिरवार को प्रथम डिलेवरी के लिए रात्रि लगभग 11ः30 बजे पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, उनाव, जिला दतिया में परिजनों के साथ लाया गया था। वहां पदस्थ चिकित्सक डाॅ. जितेन्द्र वर्मा एवं स्टाफ मौके पर उपस्थित नहीं था। स्टाफ नर्स अजीता सिंह सो रही थी। दो बार बुलाने पर गुस्से में आई। दूरभाष पर डाॅ जितेन्द्र वर्मा से बात कर प्रसव से पूर्व दो हजार रूपये जमा करने को बोला। दो हजार रूपये देने के पश्चात् डिलेवरी रूम में ले गई और 11 फरवरी को प्रातः 05ः45 बजे स्टाफ नर्स ने श्रीमती रीमा को कट लगाकर प्रसव कराया और बच्ची को बाहर निकाला। टांके नही लगाये और बिना दवा के पंलग पर लिटाकर दो हजार रूपये लेकर बिना किसी के संज्ञान में लाये डयूटी छोड़कर झांसी चली गई। सुबह नौ बजे डाॅ जितेन्द्र वर्मा आये। उन्हे रीमा के बेहोश होने और ज्यादा रक्त स्त्राव की जानकारी दी। डाॅ वर्मा ने रीमा को देखा और दतिया रेफर कर दिया। दतिया में हालत गम्भीर बताते हुये, उसे झांसी मेडिकल काॅलेज के लिए रेफर किया गया। परिजनों द्वारा झांसी में उसे एक निजी हाॅस्पिटल में भर्ती किया, जहां रीमा 24 घण्टे भर्ती रही। वहां से एक निजी अस्पताल के आई.सी.यू. में चार दिन भर्ती रही और वहां से ग्वालियर ले जाते समय रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई। इससे प्रसूता श्रीमती रीमा के जीवन, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के अधिकार के संरक्षण के दायित्व की उपेक्षा से उसकी मृत्यु एवं उसके मानव अधिकारों की घोर उपेक्षा हुई।