एक बार बालक नचिकेता ने अपने पिता से कहा, आप ब्राह्मणों को जर्जर, कृशगात और अनुपयोगी गाय दान में दे रहे हैं। उन्होंने यह नहीं कहा कि ऐसा ठीक नहीं है परंतु पिता समझ गए कि यह मेरी निंदा कर रहा है, मेरा अनादर कर रहा है, मेरे कृत्य की भर्त्सना कर रहा है। नचिकेता ने पिता से कहा- शाŒा कहते हैं कि अच्छी वस्तु, अच्छी निधि तथा अच्छी संपदा का दान करना चाहिए। अगर आप दान ही कर रहे हैं तो मुझको किसे दान में देंगे ?
पिता को चुप लग गया लेकिन बालक नचिकेता बार- बार टोकने लगा-पिताजी ! आप मुझे किसे दान में देंगे ? आपने यह भी विचार किया होगा कि मुझे भी किसी को दान में देंगे। इस पर पिता ने प्रोध में कहा-मैं तुझे यमराज को दान में देता हूं। आज से तू यम की वस्तु हुआ। दान की गई वस्तु कभी ली नहीं जाती और कभी लौटाई नहीं जाती। अब तू मेरा नहीं रहा। चूंकि मैं तुझे दान कर चुका हूं इसलिए तू मेरे पास नहीं रहेगा।
बालक नचिकेता को यह बुरा नहीं लगा कि मेरे पिता ने मुझे कुछ कहा है। ऐसी श्रद्धा थी नचिकेता की अपने पिता के प्रति। यही श्रद्धा ज्ञानकारक बनी और नचिकेता को यमराज के द्वार पर लेकर गई। यमराज ने देखा कि यह सामान्य बालक नहीं, श्रद्धावान बालक था। जब हमारे पास श्रद्धा आती है तो वह हमें बाध्य करती है। गुरु के पास जो गुरुत्व है, साधु के पास जो साधुत्व है, संन्यासी के पास जो संन्यस्त है, गंगा के पास जो गंगत्व है,देवताओं के पास जो देवत्व है और भगवान के पास जो भगवत्ता है; उसके हम स्वाभाविक रूप से अधिकारी बन जाते हैं। श्रद्धावान व्यक्तिि स्वाभाविक रूप से योग्यता रखता है चूंकि उसके पास तर्प नहीं होते।
नचिकेता संकल्लित मन से यमराज की चौखट पर बैठ गया। यमराज ने कहा-तू तीन दिन से मेरे द्वार पर बैठा है, बड़ा हठी है। मांग क्या मांगना चाहता है ? इस पर बालक नचिकेता ने कहा-मैं मृत्यु का भेद जानने आया हूं। जन्म-मृत्यु क्या है, यह भेद मुझे बता दीजिए।
यह सुनकर यमराज हतप्रभ हो गए। उन्होंने बालक नचिकेता के समक्ष ढेरों प्रलोभन रखते हुए कहा-तुम चप्रवर्ती सम्राट बनने, पृथ्वी पर प्रतिष्ठत और पूजित होने अथवा स्वर्ग की संपूर्ण संपदा प्राप्त करने का वर मांग लो। भला तुम्हारे इन प्रश्नों में क्या रखा है ? बालक नचिकेता ने कहा-महाराज ! मुझे यह सब कुछ नहीं चाहिए। मुझे वही चाहिए जिसके बारे में मैंने आपसे पूछा है। यमराज मजबूर हो गए। श्रद्धा उसे भी कहते हैं जिसके सामने जगत के सारे आकर्षण गौण हो जाएं। श्रद्धा का एक अर्थ यह भी है कि जागतिक आकर्षण गौण हो जाएं। श्रद्धा का एक अर्थ यह भी है कि जागतिक आकर्षण आपके सामने शिथिल हो जाएं। श्रद्धा के बल पर ही बालक नचिकेता ने सब कुछ प्राप्त कर लिया।
श्रद्धा से मिलता है ज्ञान
← पिछली खबर
आपके विचार
पाठको की राय