नई दिल्ली | भारत और चीन के बीच एलएसी पर सीमा संबंधी विवाद का मामला लंबा खिंचता नजर आ रहा है। सीमा पर सहमति को लेकर दोनों पक्षों का अलग-अलग रुख बने रहने से कूटनीतिक स्तर पर हुई बातचीत भी जमीन पर असर नहीं दिखा रही है। सूत्रों का कहना है कि चीन दबाव बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसकी वजह से जल्द समाधान के आसार नहीं हैं। सूत्रों ने कहा कि लगातार बातचीत से आक्रामकता कम हुई है। नए मोर्चे नहीं खुल रहे हैं, लेकिन कई जटिल मुद्दे बने हुए हैं। चीन को सहमति का पालन करना है, लेकिन जानबूझकर समय बिताया जा रहा है। अब तक हुई बातचीत में तय फार्मूले का पालन जितनी तेजी से होना चाहिए, वह तेजी चीन की ओर से नहीं दिखाई गई। भारत ने चीन को स्पष्ट किया है कि उसे सहमति का पालन करना होगा। दोनों पक्षों द्वारा विभिन्न स्तरों पर सम्पर्क बनाए रखने की जरूरत महसूस की गई है।
सूत्रों ने कहा कि भारत लंबी रणनीति के साथ एलएसी पर अपने दृढ़ रुख के साथ डटा हुआ है। सामरिक स्तर पर तैयारियों के अलावा आधारभूत ढांचे की तैयारियों को लेकर भारत अपनी रणनीति के मुताबिक चीन से सटी सभी सीमाओं पर काम कर रहा है। बजट में भी चीन सीमा पर भारत की तैयारियों को लेकर ठोस संकेत मिलेंगे। चीन भारत से व्यापारिक मोर्चे पर मिले झटके, सप्लाई चेन को लेकर भारत की तत्परता और क्वाड जैसे मंचों पर मोर्चेबंदी को लेकर प्रतिक्रियावादी रुख अपना रहा है। जबकि भारत ने स्पष्ट किया है कि उसके सभी फैसले अपने हितों के मद्देनजर हैं। सूत्रों ने साफ किया कि भरोसा चीन की तरफ से तोड़ा गया था। इसलिए उन्हें ही भरपाई के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। फिलहाल भारत अपनी सामरिक और व्यापारिक रणनीति पर आगे बढ़ता रहेगा।
हाल ही में सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने अरुणाचल प्रदेश और असम में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के निकट अग्रिम इलाकों में स्थित विभिन्न वायुसेना अड्डों का दौरा कर भारत के पश्चिमी क्षेत्र में सुरक्षा हालात जायजा लिया था। जनरल रावत ने अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी और लोहित सेक्टर समेत विभिन्न अड्डों पर तैनात सेना, आईटीबीपी और विशेष सीमांत बल (एसएफएफ) के सैनिकों से मुलाकात की थी। उन्होंने कहा था कि प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने प्रभावी निगरानी बनाए रखने और अभियानगत तैयारियां बढ़ाने के वास्ते कदम उठाने के लिए सैनिकों की सराहना की।

'बातचीत का कोई सार्थक समाधान नहीं निकला'
वहीं, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ ने बुधवार को कहा था कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध को हल करने के लिए चीन के साथ कूटनीतिक और सैन्य स्तर की बातचीत से कोई "सार्थक समाधान" नहीं निकला है और हालात जस के तस हैं। एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, रक्षा मंत्री ने कहा कि यदि जस से तस बनी रहती है, तो सैनिकों की तैनाती में कमी नहीं हो सकती है। राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा मामलों पर  इस महीने की शुरुआत में वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) की बैठक का उल्लेख किया और कहा कि सैन्य वार्ता का अगला दौर कभी भी हो सकता है।

जल्द हो सकती है अगले दौर की वार्ता
राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई दौर की वार्ता भी विवाद को सुलझाने में नाकाम रही है। हालांकि, दोनों ही देश सीमा विवाद को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और नौवें दौर की वार्ता जल्द होने की उम्मीद है।चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल तान केफेई तान ने बीते गुरुवार को एक ऑनलाइन मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच आठवें दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता के बाद से ही दोनों पक्षों ने अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों की वापसी पर चर्चा जारी रखी है। मई में शुरू हुए गतिरोध के समाधान के लिए भारत और चीन कई दौर की सैन्य  तथा कूटनीतिक स्तर की वार्ता कर चुके हैं।