विचाराधीन बंदी की जेल में मौत पर उत्तराधिकारियों को पांच लाख रूपये दो माह में दें
आयोग ने की अनुशंसा

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने राज्य शासन से केन्द्रीय जेल सतना में विचाराधीन बंदी की मौत पर मृतक के निकटतम उत्तराधिकारियों को पांच लाख रूपये दो माह में देने की अनुशंसा की है। आयोग ने प्रकरण क्र. 2759/सतना/2019 में केन्द्रीय जेल सतना में विचाराधीन बंदी रामकेश यादव की मौत हो जाने के मामले में यह अनुशंसा की है। अपनी अनुशंसा में आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य शासन जेल परिसर के अन्दर बंदियों के लिए मंदिर आदि की स्थापना की कार्यवाही, भारत के संविधान के प्रावधानों पर विचार करते हुए बंदियों की सुरक्षा के वैधानिक उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किये जाने हेतु आवश्यक उपाय व प्रबंध करे और ऐसे स्थान पर भी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा स्थापित कराते हुए परिसर के प्रत्येक स्थान पर निगरानी सुनिश्चित करे, जिससे किसी भी बंदी को आत्महत्या करने का कोई अवसर न मिले। इसके अलावा केन्द्रीय एवं जिला जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों के दाखिल होने की परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए जेल परिसरों में बंदियों की निगरानी के लिए वर्तमान मानक संख्या का पुनरीक्षण कर जेल परिसर में जेल वार्डों में दाखिल बंदियों पर प्रभावी सतर्कता/निगरानी के लिए पर्याप्त प्रहरियों की नियुक्ति करे। इसी संदर्भ में सीसीटीवी कैमरों व अन्य डिजिटल टेक्नालाॅजी का उचित और प्रभावी उपयोग कर सम्पूर्ण जेल परिसर पर निगरानी सुनिश्चित की जा सकती है। इस विषय पर भी यथाशीघ्र कार्यवाही की जाये। इस प्रकरण में केन्द्रीय जेल अधीक्षक, सतना की सूचना के अनुसार विचाराधीन बंदी रामकेश यादव द्वारा 07 मई 2019 को जेल परिसर में प्लास्टिक शेड को सहारा देने के लिये लगाये गये लोहे के पाईप से स्वयं के गमछे को गले में बांधकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली गई थी। इससे मृतक के जीवन जीने के अधिकार और उसके मानव अधिकारों की घोर उपेक्षा हुई।
जेल में दाखिल होते ही बंदी का डाॅक्टरी परीक्षण कर उसकी स्वास्थ्य पुस्तिका बनायी जाये
आयोग ने की अनुशंसा

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने राज्य शासन से जेलों में दाखिल होने वाले प्रत्येक बंदी के स्वास्थ्य की सुरक्षा के मद्देनज़र अनुशंसा की है कि जेल में दाखिल होने के तत्काल बाद यथाशीघ्र बंदी का डाॅक्टरी परीक्षण कराया जाये, उसकी स्वास्थ्य पुस्तिका बनायी जाये और प्रारंभिक स्तर पर दाखिल होने के एक माह के भीतर ही बंदी की टी.बी., रक्तचाप, एच.आई.वी., हृदय रोग, डायबिटीज़ सहित अन्य आवश्यक जांचें भी करायी जाएं, जिससे प्रारंभिक स्तर पर ही किसी बीमारी का पता लगने पर उसका समुचित इलाज जेल में रहते हुए ही उसे उपलब्ध करवाया जा सके। अपनी अनुशंसा में आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य शासन यह भी सुनिश्चित करे कि जेल में दाखिल किये जाने के पश्चात् बंदी के प्रारंभिक चिकित्सीय परीक्षण और आवश्यक जांचों के उपरांत एक निश्चित समय अंतराल के उपरांत, (जो 03 माह, 06 माह, या एक वर्ष जैसी भी युक्तियुक्त अवधि में)  चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह/विचार-विमर्श उपरान्त नियत करे, ऐसे बंदी का पुनः चिकित्सकीय परीक्षण एवं आवश्यक जांचें नियमित रूप से कराई जाये, जिससे जेल में दाखिल रहने के दौरान बंदी को प्राप्त जीवन जीने के मौलिक अधिकार के साथ ही आवश्यकतानुसार चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने के मौलिक अधिकार और तत्संबंधी मानव अधिकारों का उचित संरक्षण हो सके और केवल जेल में दाखिल होने के कारण किसी बंदी की ऐसी आवश्यक जांच और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में मृत्यु न हो सके।
आयोग द्वारा प्रकरण क्र. 7209+7476/मंदसौर/2018 में विचाराधीन बंदी रामकुमार पिता राम अवतार की उपचार के दौरान जिला चिकित्सालय, मंदसौर में 6 सितम्बर 2018 को मृत्यु हो जाने के मामले में यह अनुशंसा की है।