लखनऊ : भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का कहीं उल्लेख नहीं होने का तर्क देते हुए एक आरटीआई कार्यकर्ता ने भारत सरकार से इस बारे में प्रावधान करने की मांग की है।आरटीआई कार्यकर्ता राकेश सिंह द्वारा केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत राजभाषा विभाग से मांगी गयी जानकारी के जवाब में कहा गया, भारत के संविधान में अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी संघ की राजभाषा है। संविधान में राष्ट्रभाषा का कहीं उल्लेख नहीं है। सिंह ने आरोप लगाया कि राजभाषा विभाग ने उनकी मांग पर संज्ञान तो लिया लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने मांग की कि भारतीय संविधान में ‘राष्ट्रभाषा’ के उपबंध की व्यवस्था किये जाने के संबंध में भारत सरकार के स्तर से उचित कार्रवाई शुरू की जाए।

सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश में हिन्दी में भाषण देकर न सिर्फ राष्ट्र का गौरव बढ़ाया है बल्कि सबकी वाहवाही भी हासिल की है। उन्होंने मोदी से आग्रह किया कि वह हिन्दी दिवस के मौके पर हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने की दिशा में संवैधानिक प्रावधान करने की दिशा में पहल करें।

सिंह ने कहा, भूमंडलीकरण के इस दौर में संभवत: भारत ही पूरी दुनिया का इकलौता स5य, संप्रभु, लोकतांत्रिक देश है, जिसकी अपने ही संविधान द्वारा स्वीकृत कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। आजादी के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लाख चाहने के बावजूद हिन्दी को संविधान द्वारा स्वीकृत राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया हालांकि 14 सितंबर 1949 को संविधान में अनुच्छेद 343 जोड़कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा घोषित कर राष्ट्रभाषा के नाम पर देशवासियों को एक झुनझुना थमा दिया गया।

सिंह ने पिछले साल ‘हिन्दी दिवस’ के मौके पर 14 सितंबर को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि दुनिया में आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी रूप से शक्ति संपन्न अधिकतर देशों की वैधानिक तौर पर उनके संविधान द्वारा स्वीकृत कोई न कोई राष्ट्रभाषा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि फ्रांस की फ्रेंच, जापान की जापानी, रूस की रशियन और जर्मनी की जर्मन वैधानिक राष्ट्रभाषा है। और तो और भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की उर्दू, बांग्लादेश की बांग्ला व उर्दू तथा चीन की चीनी वैधानिक तौर पर संविधान से स्वीकृत राष्ट्रभाषा है।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे की ओर उन्होंने प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति का भी ध्यान आकषिर्त किया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके अलावा राजनीतिक दलों के प्रमुखों को भी इस बाबत उन्होंने पत्र लिखा लेकिन किसी ने इस बारे में कोई आवाज नहीं उठायी।

सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर गृह मंत्रालय ने उनकी मांग पर आवश्यक कार्रवाई के लिए राजभाषा विभाग को लिखा। राजभाषा विभाग ने सूचित किया कि उनकी मांग विभाग को मिल गयी है और उसका संज्ञान ले लिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि मांग पर संज्ञान लिये जाने के बाद क्या कार्रवाई की गयी, इस बारे में राजभाषा विभाग से सूचना मांगी गयी लेकिन अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पायी है।