नई दिल्ली . डोकलाम विवाद के चलते चीन, भारत पर दबाव बनाने की कोशिशों में लगातार जुटा हुआ है। समुद्री मोर्चे पर भी चीन आए दिन भारत के लिए चुनौतियां पेश कर रहा है। ऐसे में अपनी समुद्री ताकत को मजबूत करने में जुटी भारतीय नौसेना कई सालों की देरी के बाद आखिरकार अपने बेड़े में INS कलवरी को शामिल करने की तैयारी कर रही है। यह स्कॉर्पीन पनडुब्बी दुनिया के सबसे खतरनाक हथियारों में शुमार है जिसकी खासियत गुप्त तरीके से वार करने की है। दुश्मन को इसके आने की आहट तक नहीं मिल पाती। इसकी इन्हीं खूबियों के चलते इसका नाम समुद्र में रहने वाली एक शार्क मछली 'कलवरी' पर रखा गया है।

ब्लूमबर्ग की खबर के मुताबिक, समुद्र के अंदर लड़ने की अपनी कमजोर होती क्षमताओं को फिर से मजबूत बनाने में जुटे भारत के लिए नौसेना में शामिल होने जा रही यह स्कॉर्पीन पनडुब्बी मील का पत्थर साबित होगी। भारत ने इस तरह की छह पनडुब्बियों का ऑर्डर दिया है और INS कलवरी उनमें से पहली है। भारत की 15 पनडुब्बियों के मुकाबले चीन के समुद्री बेड़े में 60 पनडुब्बियां शामिल हैं। हिंद महासागर में चीन की इसी बढ़ती ताकत को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती के तौर पर लिया जा रहा है। नाम न जाहिर किए जाने की शर्त पर भारतीय नौसेना के एक अधिकारी ने बताया कि मई के महीने में चीन की युआन क्लास की जो डीजल पनडुब्बी हिंद महासागर में दाखिल हुई थी, वह अब भी वहां मौजूद हैं।

जुलाई में हिंद महासागर के पश्चिमी छोर पर जिबूती में अपना पहला आधिकारिक नेवी बेस बनाने वाले चीन ने हाल ही में पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी पनडुब्बियां बेची हैं। साथ ही पिछले साल चीन की एक न्यूक्लियर पनडुब्बी का पाकिस्तान के कराची जाना भी यह साबित करता है कि चीन से समुद्र में मिलने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को अभी और तैयारी करने की जरूरत है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यक्रम में रिसर्च फेलो पुशन दास ने कहा, 'लॉन्ग टर्म प्लानिंग की कमी और हथियारों की खरीद में प्लानिंग की कमी को एक तरह से भारत सरकार की लापरवाही माना जा सकता है। भारत को इस इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों को काउंटर करने के लिए कुछ करना होगा।'

1996 से बाद से भारत की समुद्री ताकत लगातार कमजोर हुई है। नौसेना के पास फिलहाल डीजल-इलेक्ट्रिक तकनीक वाली 13 पुरानी पनडुब्बियां है। इनमें 9 'रशियन-किलो' और 4 'जर्मन HDW' हैं। एक वक्त में यह संख्या 21 थी, लेकिन नौसेना रिटायर होने वाली पनडुब्बियों को रिप्लेस नहीं कर सकी। भारत की अधिकतर पनडुब्बियां पारंपरिक किस्म की हैं और 20 साल की अपनी जीवन यात्रा लगभग पूरी कर चुकी हैं। दूसरी ओर चीन के पास पांच न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बियां और 54 डीजल पनडुब्बियां हैं। चीन की सेना पर अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 तक चीन के पास 69 से 78 पनडुब्बियां हो जाने की संभावना है। 

फिर भी, जानकार कहते हैं कि हिंद महासागर में भारत के लिए खतरा बनने में चीन को सालों लग जाएंगे। ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी में नैशनल सिक्यॉरिटी कॉलेज में सीनियर रिसर्च फेलो डेविड ब्रियूस्टर ने कहा, 'भौगोलिक स्थितियों की वजह से हिंद महासागर में भारत को रणनीतिक फायदा मिलता है। हालांकि चीन यहां पनडुब्बियां भेजता रहा है, लेकिन आपको यह समझना होगा कि चीन को यहां भारत के लिए खतरा पैदा करने में शायद कई दशक लग जाएंगे। खास तौर पर अमेरिका की मौजूदगी में।'