नई दिल्ली: कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका लोगों पर प्रभाव। कांग्रेस इन दिनों पंडित जवाहर लाल नेहरू के जरिये अपना प्रभाव कायम करने की जुगत में है। दरअसल 15 अगस्त को पीएम मोदी ने लालकिले से दिए अपने पहले भाषण में भले ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विचारों का जिक्र नहीं किया लेकिन कांग्रेस नेहरू की 125वीं जयंती के मौके पर उनके विचारों और भारत को लेकर उनकी सोच को सामने लाने तैयारी कर ली हैजिससे वे मोदी के प्रभाव को कम कर सके।

हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसके लिए एक कमिटी का गठन किया है। इसकी जिम्मेदारी दिल्ली की पूर्व सीएम और हाल ही में केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने वाली सीनियर नेता शीला दीक्षित को दी गई है।

कांग्रेस का मानना है कि पीएम मोदी के योजना आयोग को खत्म करने, विदेश नीति पर नेहरू को निशाना बनाने जैसे मुद्दों से प्रथम प्रधानमंत्री की विरासत पर हमला बोला है। कांग्रेस का कहना है कि जब मोदी के कारण ही नेहरू फिर से चर्चा में हैं, ऐसे में पार्टी इसका फायदा उठाने से चूकना नहीं चाहती।

शीला दीक्षित की अध्यक्षता वाली इस कमिटी के अन्य सदस्यों में पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, जयराम रमेश, महासचिव मुकुल वासनिक और मोहन गोपाल हैं। दरअसल मोदी द्वारा अपने पहले भाषण में नेहरू का जिक्र न करने को कांग्रेस ने काफी गंभीरता से लिया है। कांग्रेस मानती है कि मोदी आजाद भारत के इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस का मानना है कि जिस तरह से नेहरू को आजाद भारत के निर्माता माना जाता है, मोदी खुद को उनके बराबर खड़ा कर उन्हें अप्रासंगिक बनाने की कोशिश में है। ऐसे में कांग्रेस ने योजना बनाई है कि बड़े पैमाने पर नेहरू जयंती का आयोजन कर उनके विचारों और सोच को नई पीढ़ी के सामने रखे।

सूत्रों के अनुसार जब यूपीए सत्तामेंथी तो उसने नेहरू की जयंती के आयोजन के लिए 100 करोड़ रुपए की योजना बनाई थी लेकिन अब सरकार में न होने के बाद भी कांग्रेस ने इस आयोजन को उस बड़े स्तर पर आयोजित करने की योजना बनाई है।