भोपाल। मध्यप्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस को लेकर जिस शिक्षण शुल्क नियंत्रण अधिनियम बनाने की बात कर रहा है, वह चार राज्यों की तर्ज पर ही बनेगा। यही वजह है कि सरकार ऐसे राज्यों की फीस निर्धारण समिति के दिशा-निर्देश शामिल कर रही है, जिससे भविष्य में विवाद की स्थिति न बने। नए कानून के लागू होने के बाद स्कूल अपनी मनमर्जी के पब्लिशर्स और राइटर्स की किताबें अभिभावकों को लेने के लिए बाध्य नहीं कर पाएंगे।
फीस बढ़ोतरी को लेकर समिति की सिफारिशें अगले तीन साल के लिए लागू रह सकती हैं जानकारी के अनुसार सरकार जिन राज्यों को इसके लिए मॉडल के तौर पर देख रही है, उनमें राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक व गुजरात शामिल है। इन राज्यों की ओर से तैयार फीस रेग्युलेशन एक्ट व उनके प्रमुख मापदंडो को मप्र सरकार भी अपने नए अधिनियम में शामिल करने पर विचार कर रही है।
नए अधिनियम में यह कर सकती है सरकार
सूत्रों के अनुसार सरकार शिक्षण शुल्क नियंत्रण अधिनियम में शुल्क निर्धारण समिति बनाकर निजी स्कूलों की मनमानी खासतौर से फीस वृद्धी को रोकने के लिए जिस कमेटी को तैयार करेगी, उसमें अध्यक्ष हाईकोर्ट के पूर्व जज हो सकते है। इसके अलावा शिक्षा विभाग के सचिव व माध्यमिक व प्रारंभिक शिक्षा के निदेशक, उप सचिव रहेंगे।
अधिनियम के तहत बनाई गई कमेटी द्वारा निजी स्कूलों को फीस से संबंधित हर छोटी-छोटी चीज का प्रोफॉर्मा दिया जाएगा, जिसे भरकर कमेटी के सामने रखना अनिवार्य होगा। वहीं स्कूल अपनी मनमर्जी के पब्लिशर्स और राइटर्स की किताबें अभिभावकों को लेने के लिए बाध्य नहीं कर पाएंगे। फीस बढ़ोतरी को लेकर समिति की सिफारिशें तीन साल के लिए स्थिर रह सकती हैं। यानी एक बार फीस तय होने पर स्कूल अगली बार कमेटी द्वारा स्वीकार क रने पर ही फीस बढ़ा पाएंगे।
नियम का पालन नहीं करने पर होगी मान्यता रद्द
सूत्रों के अनुसार अधिनियम में सरकार ये प्रावधान भी कर सकती है कि नियम नहीं मानने वाले स्कूलों पर आर्थिक दंड के साथ उसकी मान्यता भी रद्द की जा सकती है। कमेटी मीटिंग का एक निश्चित समय निर्धारित करेंगी जिसमें स्कूलों को पूरा लेखा-जोखा लेकर पहुंचना होगा। कमेटी ही तय करेगी कि छात्रों से ली जा रही फीस न्यायसंगत है या फिर मुनाफाखोरी के चक्कर में ज्यादा फीस वसूली जा रही है। कमेटी को वैधानिक शक्तियां भी दी जा सकती हैं, जिसके तहत समस्त मामलों में वह स्वयं प्रक्रिया का निर्धारण कर सकेगी।
बहुत देर से सरकार को ध्यान आया
सरकार को बहुत देर से शिक्षण शुल्क नियंत्रण अधिनियम बनाने का ध्यान आया। प्रदेश में पिछले 20 साल से निजी स्कूलों ने लूट मचा रखी है। करीब 12 साल से तो प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। पहले ही इसके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए गए? तीन साल से हम लगातार मैमोरेंडम दे रहे हैं। ये ईमानदारी से अधिनियम नहीं बना सकते। आरटीई की तरह इसमें भी चोर दरवाजे बनाए जाएंगे।
शिक्षा का निजीकरण हो रहा है। समान शिक्षा व्यवस्था की बात ही नहीं होती। निजी पब्लिशर्स की किताबें धड़ल्ले से स्कूलों में चल रही हैं, हर साल इन पर रोक की बात होती है। लेकिन, कुछ नहीं होता। सरकारी बाजारीकरण की नीति बनाती है। जो कलेक्टर इसके विस्र्द्ध आवाज उठाते हैं उन पर ही कार्रवाई होती है। ऐसे मसलों में कलेक्टरों के हाथ बांध दिए गए हैं।
डॉ. अनिल सद्गोपाल, शिक्षाविद्
सरकार शिक्षण शुल्क नियंत्रण अधिनियम बनाने जा रही है। इसके लिए दूसरे राज्यों के कानूनों का अध्ययन किया जा रहा है। इसे प्रभावी बनाने के लिए फीस कमेटी कानूनी और न्यायिक शक्तियां भी दी जाएंगी। हमारी तैयारी है कि इसे एक महीने में ही तैयार कर लें। मामला चूकि हाईकोर्ट में भी चल रहा है, इसलिए सरकार भी इसमें कोई लेटलतीफी नहीं चाहती है।
दीपक जोशी, स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री
चार राज्यों की तर्ज पर बनेगा शिक्षण शुल्क नियंत्रण अधिनियम
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