राघोपुर

महुआ से ही सटे राघोपुर में लालू के दूसरे बेटे तेजस्वी यादव मैदान में हैं. ये सीट पिछली बार तेजस्वी की मां राबड़ी को हरा कर सतीश राय ने अपने पाले में की थी. लेकिन राजद से गठबंधन के बाद जेडीयू ने ये सीट लालू के हवाले कर दी और सतीश का पत्ता कट गया पर एन मौके पर बीजेपी ने सतीश राय को टिकट थमा दिया है. कहा जा रहा है कि राजद के संगठन का भी एक हिस्सा सतीश के लिए प्रचार कर रहा है.
महुआ

इस सीट पर राजनीतिक पंडितों की खास निगाह है क्योंकि यहां से राजद प्रमुख लालू यादव के बेटे तेज प्रताप किस्मत आजमा रहे हैं. लालू ने बड़ी चालाकी से ये सीट तेज के लिए चुनी क्योंकि यहां यादव वोटों की संख्या काफी ज्यादा है. लेकिन तेज की मुश्किलें बढ़ा दी है लगभग दस अन्य यादव उम्मीदवारों ने. इसका सीधा फायदा बीजेपी के रवींद्र राय को होता दिखाई दे रहा है. बागी उम्मीदवारों में जगेश्वर यादव और विनोद यादव की अच्छी पकड़ इस इलाके में है. अगर वोट बंटा तो तेज प्रताप का सपना टूट सकता है.
मोकामा

मोकामा से निर्दलीय उम्मीदवार अनंत सिंह ने एनडीए के कन्हैया सिंह और महागठबंधन के नीरज कुमार दोनों की नींद उड़ा दी है. लोजपा के बागी ललन सिंह भी जनहित पार्टी से मैदान में हैं. अब ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो 8 नवंबर को ही पता चलेगा लेकिन चर्चा यही है कि फायदा निर्दलीय को मिलेगा.
बिहारशरीफ

ये सीएम नीतीश का गढ़ है. यहां महागठबंधन से असगर शमीम मैदान में है और एनडीए के डॉक्टर सुनील कुमार से सीधा मुकाबला है. जातीय समीकरण के आधार पर शमीम मजबूत स्थिति में थे लेकिन पप्पू खान की पत्‍नी आफरीन सुल्‍ताना की उम्मीदवारी ने मुश्किलें बढ़ा दी है. बाहुबली पप्पू खान तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और अंदरखाने की चर्चा ये है कि अगर दस हजार मुस्लिम वोट भी इनके खाते में गया तो बीजेपी ये सीट निकाल सकती है.
दानापुर

दानापुर की सीट पर एनडीए के नेता फीलगुड नहीं कर पा रहे हैं. इलाके से भाजपा की विधायक आशा सिन्हा से लोग काफी हद तक नाराज हैं. पिछले चुनाव में आशा सिन्हा ने रीतलाल यादव को लगभग 18 हजार वोटों से हराया था. रीतलाल अब इलाके से एमएलसी हैं ऐसे में उनके प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा रहा. दानापुर इलाके में लोगों का विधायक से असंतुष्ट होना खुद पार्टी के लिए भी चिंता का सबब बना हुआ है. राजद ने इस सीट से राजकिशोर यादव को चुनावी समर में उतारा है.
मांझी

मांझी सीट से गौतम सिंह विधायक हैं. गौतम ने पिछला चुनाव जदयू के टिकट पर जीता था. इलाके में उनका प्रभाव भी है, लेकिन इस बार गौतम सिंह ने दल बदल दिया है. जेडीयू से बगावत कर हम का दामन थामने वाले गौतम सिंह के लिए मांझी की सीट आसान नहीं दिख रही. इलाके में महागठबंधन के असर से खुद पार्टी के नेता भी इनकार नहीं कर रहे हैं, लेकिन नीतीश के कुनबे में मंत्री रह चुके गौतम की जीत के लिए मांझी समेत एनडीए के नेता भी लगातार इलाके में कैंप कर रहे हैं.
सोनपुर

किसी जमाने में राजद के गढ़ रहे सोनपुर की सीट पर पिछली बार बीजेपी ने जीत का झंडा गाड़ा था. 2010 के विधानसभा चुनाव में राबड़ी देवी को बीजेपी के विनय कुमार सिंह ने लगभग 24 हजार वोटों के भारी अंतर से हराया था. सोनपुर से इस बार भी बीजेपी के नेता विनय कुमार सिंह ही चुनावी समर में हैं. महागठबंधन की तरफ से यह सीट राजद के खाते में है जहां राजद ने रामानुज प्रसाद को चुनावी समर में उतारा है. राबड़ी देवी को हरा कर सोनपुर से जीत दर्ज करने वाले विनय कुमार सिंह को भी इलाके में जीत के लिए खासा पसीना बहाना पड़ रहा है. इसका कारण विनोद सम्राट भी हैं जो निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं.