काठमांडो: नेपाल की संविधान सभा ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को सख्ती से ठुकरा दिया और हिंदू बहुल इस हिमालयी देश के धर्मनिरपेक्ष बने रहने पर सहमति जताई. संविधान सभा के इस फैसले का हिंदू संगठनों ने विरोध किया.
संविधान सभा में नए संविधान के अनुच्छेदों को लेकर हुए मतदान के दौरान दो-तिहाई सदस्यों ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव वाले संशोधन को ठुकरा दिया और इस बात पर जोर दिया कि नेपाल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहेगा.
हिंदू समर्थक समूह राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल की ओर से यह प्रस्ताव पेश किया गया था. इस पार्टी ने मांग की थी कि संविधान के अनुच्छेद चार से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाया जाए और इसके स्थान पर हिंदू राष्ट्र शामिल किया जाए.
संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र ने प्रस्ताव के ठुकराए जाने का ऐलान किया तो राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के कमल थापा ने मत विभाजन की मांग की.
थापा के प्रस्ताव के पक्ष में 601 सदस्यीय संविधान सभा में सिर्फ 21 मत मिले, जबकि मत विभाजन के लिए 61 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है.
पहले हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल को साल 2006 के जन आंदोलन की सफलता के बाद साल 2007 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था.
इसी साल जुलाई में जनमत संग्रह के दौरान अधिकांश नेपालवासिायों ने नए संविधान में ‘धर्मनिरनेक्षता’ की बजाय ‘हिंदू’ अथवा ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ शब्द को शामिल करने को तरजीह दी थी.
संविधान सभा में प्रस्ताव खारिज होने के बाद हिंदू कार्यकर्ताओं के समूह पीले और भगवा झंडे लेकर सड़कों पर निकले और काठमांडो के न्यू बनेवश्वर इलाके में सुरक्षा बलों के साथ उनकी झड़प हुई. झड़प उस वक्त हुई जब पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों को तितर-वितर करने के लिए बल प्रयोग किया. प्रदर्शनकारियों ने संविधान सभा की इमारत के निकट उस इलाके में घुसने का प्रयास किया, जहां निषेधाज्ञा लगी हुई है.
प्रदर्शनकारी संविधान सभा की ओर मार्च करना चाहते थे. प्रदर्शनकारियों ने संयुक्त राष्ट्र के एक वाहन सहित कई वाहनों पर हमला किया.नेपाल कल नए संविधान को लागू करने के अंतिम दौर में पहुंच गया.मधेसी पार्टियां नए संविधान का विरोध कर रही हैं और हिंसक प्रदर्शनों में करीब 40 लोगों की मौत हो चुकी है.
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