नई दिल्ली : महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने लैंगिक संवेदनशीलता बनाने में पुरूषों की ‘महत्वपूर्ण’ भूमिका को रेखांकित करते हुए अपनी इस टिप्प्णी से संभावित रूप से विवाद उत्पन्न कर दिया कि सभी हिंसा के ‘जनक पुरूष’ होते हैं।
 
मेनका ने इसके साथ ही कहा कि उनका मंत्रालय विद्यालयों में ‘जेंडर चैंपियंस’ की अवधारणा पर काम कर रहा है जिसके तहत जो लड़के लड़कियों के प्रति ‘विशेष रूप से सम्मानजनक एवं मददगार’ होंगे और उन्हें पुरस्कार दिया जाएगा। मेनका ने फेसबुक पर लोगों से सीधी बातचीत करते हुए लैंगिक संवेदनशीलता निर्मित करने में पुरूषों की अधिक हिस्सेदारी का आह्वान किया क्योंकि ये पुरूष जनित होते हैं।
 
उन्होंने कहा, ‘पुरूषों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि सभी हिंसा के जनक पुरूष होते हैं। एक तरीका इससे स्कूल स्तर पर निपटना हो सकता है। इसलिए हमने ऐसा कुछ शुरू किया है जो कुछ महीनों में प्रभाव में आ जाएगा। इसे ‘जेंडर चैंपियंस’ कहा जाएगा जिसके तहत ऐसे लड़कों का चयन किया जाएगा जो विशेष रूप से लड़कियों के प्रति सम्मानजनक और मददगार होते हैं और जिनका अनुसरण और जिन्हें पुरस्कृत करने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘प्रत्येक वर्ष एक को प्रत्येक कक्षा में पुरस्कार दिया जाएगा। यह किसी लड़की को भी दिया जा सकता है जिसका प्रदर्शन बहादुरी या दृष्टिकोण में उत्कृष्ट रहा हो।’
 
यह बातचीत मंत्रालय की उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं की पहचान के लिए उसकी ‘100 महिला पहल’ में हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयासों का हिस्सा थी। अन्य मुद्दों पर मेनका ने कहा कि झुग्गी में रहने वाले बच्चों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा मुहैया कराने के लिए भारत में प्रत्येक सात मिनट पर एक नये स्कूल की जरूरत है।
 
मेनका ने कहा, ‘आंकड़े के हिसाब से भारत को प्रत्येक सात मिनट पर एक नये स्कूल की जरूरत है। हमारी विद्यालय प्रणाली विश्व में सबसे बड़ी है। मैं इससे सहमत हूं कि हम और बेहतर कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि विदेशों की तुलना में भारत का मीडिया महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील है। उन्होंने साथ ही कहा, ‘निजी तौर पर मैं देखती हूं कि मीडिया महिलाओं के मुद्दे पर विदेशों की तुलना में भारत में अधिक संवेदनशील है।’ मेनका ने कहा, ‘कभी कभी यह हमें अंतरराष्ट्रीय रूप से मुश्किल में डाल देता है क्योंकि मीडिया महिलाओं के खिलाफ हिंसा के एक पहलू को उठाता है और व्यक्तिगत मामलों को आगे बढ़ाता है जो कि विदेशों में यह प्रभाव देता है कि हमारा समाज महिलाओं के प्रति असंवेदनशील है। वहीं दूसरी ओर हिंसा पर मीडिया के रूख के चलते कई अच्छे कानून बने हैं और बेहतर जागरूकता उत्पन्न हुई है।’